अष्टावक्र गीता
अध्याय १६
श्लोक ५
इदं कृतं इदं नेति द्वन्द्वैर्मुक्तं यदा मनः।।
धर्मार्थकाममोक्षेषु निरपेक्षं तदा भवेत्।।५।।
(इदं कृतं इदं न - इति द्वन्द्वैः मुक्तं यदा मनः। धर्म - अर्थ - काम - मोक्षेषु निरपेक्षं तदा भवेत्।।)
अर्थ : जीवन के धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष इन चार श्रेयस्कर पुरुषार्थों अर्थात् प्रयोजनों के संबंध में ' यह कर लिया है, और यह अभी नहीं किया है - करना है', इत्यादि द्वन्द्वों से मन जैसे ही मुक्त हो जाता है वैसे ही वास्तविक रूप से निरपेक्ष (उदासीन और स्थितप्रज्ञ) हो जाता है।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೬
ಶ್ಲೋಕ ೫
ಇದಂ ಕೃತಮಿದಂ ನೇತಿ
ದ್ವನ್ದ್ವೈರ್ಮುಕ್ತಂ ಯದಾ ಮನಃ||
ಧರ್ಮಾರ್ಥಕಾಮಮೋಕ್ಷೇಷು
ನಿರಪೇಕ್ಷಂ ತಥಾ ಭವೇತ್||೫||
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Ashtavakra Gita
Chapter 16
Stanza 5
When the mind is free from such pairs of opposites as "this is done" and "this is not done" it becomes indifferent to religious merit (धर्म / Dharma), worldly prosperity (अर्थ / artha), desire of sensual enjoyment (काम / kAma) and of liberation (मोक्ष / mokSha).
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