अष्टावक्र गीता
अध्याय १५
श्लोक १
अष्टावक्र उवाच --
यथातथोपदेशेन कृतार्थः सत्त्वबुद्धिमान्।।
आजीवमपि जिज्ञासुः परस्तत्र विमुह्यति।।१।।
(यथा-तथा-उपदेशेन कृतार्थः सत्त्वबुद्धिमान्। आजीवं अपि जिज्ञासुः परः तत्र विमुह्यति।।)
अर्थ : किसी शुद्धबुद्धियुक्त मनुष्य के लिए जैसा भी उपदेश उसे दिया जाता है, उसे विवेक सहित ग्रहण कर वह कृतार्थ / धन्य हो जाता है, जबकि दूसरा कोई मनुष्य जिसकी बुद्धि शुद्ध नहीं हुई है, जीवन भर उपदेश सुनते रहने पर और भी अधिक भ्रमित हो जाता है।
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ಪಞ್ಚದಶಾಧ್ಯಾಯಃ
ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫
ಶ್ಲೋಕ ೧
ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಉವಾಚ --
ಯಥಾತಥೋಪದೇಶೇನ ಕೃತಾರ್ಥಃ ಸತ್ತ್ವಬುದ್ಧಿಮಾನ್||
ಆಜೀವಮಪಿ ಜಿಜ್ಞಾಸುಃ ಪರಸ್ತತ್ರ ವಿಮುಹ್ಯತಿ||೧||
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Ashtavakra Gita
Chapter 15
Stanza 1
Ashtavakra said --
A man of pure intellect has his (life's) object fulfilled even by instruction casually imparted. The other is bewildered there after enquiring throughout the whole life.
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