Sunday, 9 April 2023

यथातथोपदेशेन

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक १

अष्टावक्र उवाच --

यथातथोपदेशेन कृतार्थः सत्त्वबुद्धिमान्।।

आजीवमपि जिज्ञासुः परस्तत्र विमुह्यति।।१।।

(यथा-तथा-उपदेशेन कृतार्थः सत्त्वबुद्धिमान्। आजीवं अपि जिज्ञासुः परः तत्र विमुह्यति।।)

अर्थ : किसी शुद्धबुद्धियुक्त मनुष्य के लिए जैसा भी उपदेश उसे दिया जाता है, उसे विवेक सहित ग्रहण कर वह कृतार्थ / धन्य हो जाता है, जबकि दूसरा कोई मनुष्य जिसकी बुद्धि शुद्ध नहीं हुई है, जीवन भर उपदेश सुनते रहने पर और भी अधिक भ्रमित हो जाता है।

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ಪಞ್ಚದಶಾಧ್ಯಾಯಃ

ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೧

ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಉವಾಚ --

ಯಥಾತಥೋಪದೇಶೇನ ಕೃತಾರ್ಥಃ ಸತ್ತ್ವಬುದ್ಧಿಮಾನ್||

ಆಜೀವಮಪಿ ಜಿಜ್ಞಾಸುಃ ಪರಸ್ತತ್ರ ವಿಮುಹ್ಯತಿ||೧||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza 1

Ashtavakra said --

A man of pure intellect has his (life's) object fulfilled even by instruction casually imparted. The other is bewildered there after enquiring throughout the whole life.

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