अष्टावक्र गीता
अध्याय १५
श्लोक १६
तवैवाज्ञानतो विश्वं त्वमेकः परमार्थतः।।
त्वत्तोऽन्यो नास्ति संसारी नासंसारी च कश्चन।।१६।।
(तव एव अज्ञानतः विश्वं त्वमेकः परमार्थतः। त्वत्तः अन्यः न अस्ति संसारी न असंसारी च कश्चन।।)
अर्थ : (तुम्हारे ही) अज्ञान से ही तुम्हारा विश्व तुम्हें प्रतीत होता है, परमार्थतः तो केवल एक तुम हो। तुमसे अन्य कोई और नहीं है, जो कि संसारी या असंसारी हो।
उक्त श्लोक के अंग्रेजी अनुवाद में 'संसारी' को 'जीव' के अर्थ में और 'असंसारी' को 'ईश्वर' के अर्थ में ग्रहण किया गया है।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫
ಶ್ಲೋಕ ೧೬
ತವೈವಾಜ್ಞಾನತೋ ವಿಶ್ವಂ
ತ್ವಮೇಕಃ ಪರಮಾರ್ಥತಃ||
ತ್ವತ್ತೋऽನ್ಯೋ ನಾಸ್ತಿ ಸಂಸಾರೀ
ನಾಸಂಸಾರೀ ಕಶ್ಚನ||೧೬||
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Ashtavakra Gita
Chapter 15
Stanza 16
It is verily through your ignorance that the universe exists. In reality you alone are. There is no Jiva or Ishwara other than you.
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