Friday, 28 April 2023

आयासात्सकलो दुःखी

अष्टावक्र गीता 

अध्याय १६

श्लोक ३

आयासात्सकलो दुःखी नैनं जानाति कश्चन।।

अनेनैवोपदेशेन धन्यः प्राप्ननोति निर्वृतिम्।।३।।

(आयासात् सकलः दुःखी न एनं जानाति कश्चन। अनेन एव उपदेशेन धन्यः प्राप्नोति निर्वृतिम्।।)

अर्थ  : हर कोई, प्रत्येक ही दुःखी है, क्योंकि कोई भी यह नहीं जानता कि यत्न करना ही दुःख का कारण है। जबकि बिरला कोई धन्य है जो इसे जानकर शान्त और कृतकृत्य हो जाता है, उसके लिए  कुछ करने या न करने का प्रश्न ही समाप्त हो जाता है।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೬

ಶ್ಲೋಕ ೩

ಆಯಾಸಾತ್ಸಕಲೋ ದುಃಖೀ

ನೈನಂ ಜಾನಾತಿ ಕಶ್ಚನ||

ಅನೇನೈವೋಪದೇಶೇನ

ದನ್ಯಃ ಪ್ರಾಪ್ನೋತಿ ನಿರ್ವೃತಿಂ||೩||

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Ashtavakra Gita

Chapter 16

Stanza 3

All are unhappy because they exert them-selves. And one knows this (secret). But The Blessed one attains emancipation through this very instruction.

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