अष्टावक्र गीता
अध्याय १५
श्लोक १५
अयं सोहमयं नाहं विभागमिति सन्त्यज।।
सर्वमात्मेति निश्चित्य निःसंकल्पः सुखी भव।।१५।।
(अयं सः, अहं अयं न, अहं विभागं इति सन्त्यज। सर्वं आत्मा इति निश्चित्य निःसंकल्पः सुखी भव।।)
अर्थ : यह 'वह' है, यह मैं नहीं, अयं और अहं के बीच इस प्रकार से होनेवाले विभाजन को पूरी तरह से त्याग दो। सब आत्मा ही है इसका निश्चय कर लो, और संकल्परहित हो सुखी हो जाओ।
(मूल अंग्रेजी अनुवाद* में 'वह' का अर्थ He / परमात्मा या ब्रह्म किया गया है, ऐसा जान पड़ता है।)
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫
ಶ್ಲೋಕ ೧೫
ಅಯಂ ಸೋಹಮಯಂ ನಾಹಂ ವಿಭಾಗಮಿತಿ ಸನ್ತ್ಯಜ||
ಸರ್ವಮಾತ್ಮೇತಿ ನಿಶ್ಚಿತ್ಯ ನಿಃಸಂಕಲ್ಪಃ ಸುಖೀ ಭವ||೧೫||
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Ashtavakra Gita
Chapter 15
Stanza 15
Completely give up such distinctions as 'I am * He' and 'I am not this.' Consider all as the Self and be desireless and happy.
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