अष्टावक्र गीता
अध्याय १५
श्लोक २
मोक्षो विषयवैरस्यं बन्धो वैषयिकोरसः।।
एतावदेव विज्ञानं यथेच्छसि तथा कुरु।।२।।
(मोक्षः विषय-वैरस्यं बन्धः वैषयिकः रसः। एतावत् एव विज्ञानं यथा-इच्छसि तथा कुरु।।)
अर्थ : विषयों के प्रति अरुचि होना ही मोक्ष है, विषयों के प्रति रुचि होना बन्धन। (अध्यात्म के तत्व का) संपूर्ण विज्ञान मात्र यहीं तक, इतना ही है, अब आगे जैसी भी तुम्हारी इच्छा।
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय १८ का निम्नलिखित श्लोक कुछ इसी तरह का प्रतीत होता है --
इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया।।
विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु।।६३।।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫
ಶ್ಲೋಕ ೨
ಮೋಕ್ಷೋ ವಿಷಯಷೈರಸ್ಯಂ
ಬಂಧೋ ಪೈಯಯಿಕೋ ರಸಃ||
ಏತಾವದೇವ ವಿಜ್ಞಾನಂ
ಯಥೇಚ್ಛಸಿ ತಥಾ ಕುರು||೨||
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Ashtavakra Gita
Chapter 15
Stanza 2
Distaste for sense-objects is liberation ; live for sense-objects is bondage. Such verily is Knowledge. Now do as you please.
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