अष्टावक्र गीता
अध्याय १६
श्लोक २
भोगं कर्म समाधिं वा कुरु विज्ञ तथापि ते।।
चित्तं निरस्त सर्वाशमत्यर्थं रोचयिष्यति।।२।।
(भोगं कर्म समाधिं वा कुरु विज्ञ तथापि ते। चित्तं निरस्त-सर्वाशं अत्यर्थं रोचयिष्यति।।)
अर्थ : हे विज्ञ! तुम भोग, कर्म या समाधि का अभ्यास करो, उसे जानो, और चित्त से इन सबको अत्यन्त और पूरी तरह से निरस्त भी कर दो, तथापि उसे प्राप्त कर लेने की उत्कंठा तुम्हें तब तक उसकी ओर अवश्य ही आकर्षित करती रहेगी, जो कि समस्त विषयों से परे है, और जिसमें समस्त इच्छाएँ विलीन हो जाती हैं।
[विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः।।
रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते।।५९।।
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय २]
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೬
ಶ್ಲೋಕ ೨
ಭೋಗಂ ಕರ್ಮ ಸಮಾಧಿಂ ವಾ
ಕುರು ವಿಜ್ಞಾನ ತಥಾಪಿ ತೇ||
ಚಿತ್ತಂ ನಿರಸ್ತ ಸರ್ವಾಶ-
ಮತ್ಯರ್ದಂ ರೋಚಯಿಷ್ಯತಿ||೨||
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Ashtavakra Gita
Chapter 16
Stanza 2
O Sage! You may enjoy or work, or practice mental concentration. But your mind will still yearn for That which is beyond all objects and in which all desires are extinguished.
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