अष्टावक्र गीता
अध्याय १५
श्लोक ७
विश्वं स्फुरति यत्रेदं तरङ्गा इव सागरे।।
तत्त्वमेव न सन्देहश्चिन्मूर्ते विज्वरो भव।।७।।
(विश्वं स्फुरति यत्रेदं इदं तरङ्गाः इव सागरे। तत् त्वं एव न सन्देहः चिन्मूर्ते विज्वरः भव।।)
अर्थ : हे चिन्मूर्ते! सागर में जैसे तरङ्गें उठती हैं, वैसे ही इस विश्व रूपी तरङ्गें जिस सागर में उठती हैं, तुम वह सागर हो, इस बारे में सन्देह मत करो और ज्वर से रहित शान्ति में स्थित हो जाओ।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫
ಶ್ಲೋಕ ೭
ವಿಶ್ವಂ ಸ್ಫುರತಿ ಯತ್ರೇದಂ ತರಙ್ಗಾ ಇವ ಸಾಗರೇ ||
ತತ್ತ್ವಮೇವ ನ ಸನ್ದೇಹಶ್ಚಿನ್ಮೇರ್ತೇ ವಿಜ್ವರೋ ಭವ||೭||
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Ashtavakra Gita
Chapter 15
Stanza 7
O you Intelligence, you indeed are that in which the universe manifests it-self like waves on the ocean. Be you free from fever.
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