Saturday, 8 April 2023

अन्तर्विकल्पशून्यस्य

अष्टावक्र गीता

अध्याय १४

श्लोक ४

अन्तर्विकल्पशून्यस्य बहिःस्वच्छन्दचारिणः।।

भ्रान्तस्येव दशास्तास्तास्तादृशा एव जानते।।४।।

(अन्तर्विकल्पशून्यस्य बहिः स्वच्छन्दचारिणः। भ्रान्तस्य इव दशा ताः ताः तादृशा एव जानते।।)

"ज्ञा" - उभयपदी धातु लट् लकार, बहुवचन आत्मनेपदी :

प्रथम पुरुष  जानीते (एकवचन) जानते (द्विवचन) जानते (बहु-वचन) -- वे जानते हैं।

अर्थ : ऐसे आत्मज्ञानी पुरुष जिनके हृदय संशय-विकल्परहित होते हैं, और बाह्य आचरण स्वच्छन्द, यद्यपि उनकी दशा भ्रान्त जैसी प्रतीत हो सकती है और उन्हें वे ही जानते हैं जो उस दशा को जानते हैं।

||इति चतुर्दशाध्यायः||

--

ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೪

ಶ್ಲೋಕ ೪

ಅನ್ತರ್ವಿಕಲ್ಪಶೂನ್ಯಸ್ಯ ಬಹಿಃಸ್ವಚ್ಛನ್ದಚಾರಿಣಃ||

ಭ್ರಾನ್ತಸ್ಯೇವ ದಶಾಸ್ತಾಸ್ತಾಸ್ತಾದೃಶಾ ಏವ ಜಾನತೇ||೪||

||ಇತಿ ಚತುರ್ದಶಾಧ್ಯಾಯಃ||

--

Ashtavakra Gita

Chapter 14

Stanza 4

The different conditions of one who within is devoid of doubts but who without moves about at his own pleasure like a deluded person, can only be understood by those like him.

Thus concludes chapter 14 of the text :

Ashtavakra Gita. 

***


 

No comments:

Post a Comment