अष्टावक्र गीता
अध्याय १४
श्लोक ४
अन्तर्विकल्पशून्यस्य बहिःस्वच्छन्दचारिणः।।
भ्रान्तस्येव दशास्तास्तास्तादृशा एव जानते।।४।।
(अन्तर्विकल्पशून्यस्य बहिः स्वच्छन्दचारिणः। भ्रान्तस्य इव दशा ताः ताः तादृशा एव जानते।।)
"ज्ञा" - उभयपदी धातु लट् लकार, बहुवचन आत्मनेपदी :
प्रथम पुरुष जानीते (एकवचन) जानते (द्विवचन) जानते (बहु-वचन) -- वे जानते हैं।
अर्थ : ऐसे आत्मज्ञानी पुरुष जिनके हृदय संशय-विकल्परहित होते हैं, और बाह्य आचरण स्वच्छन्द, यद्यपि उनकी दशा भ्रान्त जैसी प्रतीत हो सकती है और उन्हें वे ही जानते हैं जो उस दशा को जानते हैं।
||इति चतुर्दशाध्यायः||
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೪
ಶ್ಲೋಕ ೪
ಅನ್ತರ್ವಿಕಲ್ಪಶೂನ್ಯಸ್ಯ ಬಹಿಃಸ್ವಚ್ಛನ್ದಚಾರಿಣಃ||
ಭ್ರಾನ್ತಸ್ಯೇವ ದಶಾಸ್ತಾಸ್ತಾಸ್ತಾದೃಶಾ ಏವ ಜಾನತೇ||೪||
||ಇತಿ ಚತುರ್ದಶಾಧ್ಯಾಯಃ||
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Ashtavakra Gita
Chapter 14
Stanza 4
The different conditions of one who within is devoid of doubts but who without moves about at his own pleasure like a deluded person, can only be understood by those like him.
Thus concludes chapter 14 of the text :
Ashtavakra Gita.
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