Saturday, 1 April 2023

कृतं किमपि नैव स्यात्

अष्टावक्र गीता

अध्याय १३

श्लोक ३

कृतं किमपि नैव स्यादिति सञ्चिन्त्य तत्त्वतः।।

यदा यत्कर्तुमायाति तत्कृत्वासे यथासुखम्।।३।।

(कृतं किं अपि न एव स्यात् इति सञ्चिन्त्य तत्त्वतः। यदा यत् कर्तुं आयाति तत् कृत्वा आसे यथासुखम्।।)

अर्थ : वस्तुतः तो कर्ममात्र घटित भर होता है, न तो किसी के द्वारा किया जाता है, न कर्म का कोई अपना स्वतंत्र अस्तित्व है, कर्म, असंख्य क्रियाओं का केवल सम्मिलित एक परिणाम मात्र होता है, इस प्रकार से कर्म के स्वरूप को तत्त्वतः समझते हुए जब जो कर्म कर्तव्य की भाँति प्राप्त होता है, मैं उसे करता हुआ सुखपूर्वक रहता हूँ।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೩

ಶ್ಲೋಕ ೩

ಕೃತಂ ಕಿಮಪಿ ನೈವಸ್ಯಾ-

ದಿತಿ ಸಞ್ಚಿನ್ಚ್ಯ ತತ್ತ್ವತಃ||

ಯದಾ ಯತ್ಕರ್ತುಮಾಯಾತಿ

ತತ್ ಕೃತ್ಮಾಸೇ ಯಥಾಸುಖಂ||೩||

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Ashtavakra Gita

Chapter 13

Stanza 3 

Fully realizing that nothing whatsoever is really done by the Self, I do whatever presents itself to be done and live happily.

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