अष्टावक्र गीता
अध्याय १५
श्लोक ४
न त्वं देहो न ते देहो भोक्ताकर्ता न वा भवान्।।
चिद्रूपोऽसि सदा साक्षी निरपेक्षः सुखं चर।।४।।
(न त्वं देहः न ते देहः भोक्ता-कर्ता न वा भवान्। चित् रूपः असि सदा साक्षी निरपेक्षः सुखं चर।।)
अर्थ : न तो तुम शरीर हो और न शरीर तुम्हारा है। और न ही तुम कर्ता-भोक्ता आदि हो, तुम तो केवल शुद्ध चित्-रूप, नित्य साक्षी निरपेक्ष हो, और इसे जानते हुए सदा ही सुखपूर्वक रहो।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫
ಶ್ಲೋಕ ೪
ನ ತ್ವಂ ದೇಹೋ ನ ತೇ ದೇಹೋ
ಭೋಕ್ತಾಕರ್ತಾ ನ ವಾ ಭವಾನ್||
ಚಿದ್ರೂಪೋऽಸಿ ಸದಾಸಾಕ್ಷೀ
ನಿರಪೇಕ್ಷಃ ಸುಖಂ ಚರ||೪||
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Ashtavakra Gita
Chapter 15
Stanza 4
You are not the body, nor is the body yours, nor or you the doctor the enjoyer. You are Intelligence itself, the eternal witness and you are free, Get along happily.
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