अष्टावक्र गीता
अध्याय १३
श्लोक ४
कर्मनैष्कर्म्यनिर्बन्धभावादेहस्थयोगिनः।।
संयोगायोगविरहादहमासे यथासुखम्।।४।।
(कर्म-नैष्कर्म्य-निर्बन्ध-भावात् इहस्थ योगिनः। संयोग-अयोग विरहात् अहं आसे यथासुखम्।।)
अर्थ : देहात्मभावना से युक्त होने पर योगी कर्म तथा नैष्कर्म्य आदि के विचार से बद्ध होते हैं । जबकि देह से अपनी बद्धता या भिन्नता अर्थात् संयोग या वियोग की भावना से रहित होने से, मैं नित्य स्वतन्त्र होकर सुखपूर्वक रहता हूँ।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೩
ಶ್ಲೋಕ ೪
ಕರ್ಮನೈಷ್ಕರ್ಮ್ಯ ನಿರ್ಭಾಬನ್ಧ-
ಭಾವಾದೇಹಸ್ಥ ಯೋಗಿನಃ||
ಸಂಯೋಗಾಯೋಗ ವಿರಹಾ-
ದಹಮಾಸೇ ಯಥಾಸುಖಮ್||೪||
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Ashtavakra Gita
Chapter 13
Stanza 4
The yogis who are attached to the body insist upon action or inaction. Owing to the absence of association and dissociation, I live happily.
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