Monday, 3 April 2023

कर्मनैष्कर्म्यनिर्बन्धभावादेह

अष्टावक्र गीता

अध्याय १३

श्लोक ४

कर्मनैष्कर्म्यनिर्बन्धभावादेहस्थयोगिनः।।

संयोगायोगविरहादहमासे यथासुखम्।।४।।

(कर्म-नैष्कर्म्य-निर्बन्ध-भावात् इहस्थ योगिनः। संयोग-अयोग विरहात् अहं आसे यथासुखम्।।)

अर्थ : देहात्मभावना से युक्त होने पर योगी कर्म तथा नैष्कर्म्य आदि के विचार से बद्ध होते हैं । जबकि देह से अपनी बद्धता या भिन्नता अर्थात् संयोग या वियोग की भावना से रहित होने से, मैं नित्य स्वतन्त्र होकर सुखपूर्वक रहता हूँ।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೩

ಶ್ಲೋಕ ೪

ಕರ್ಮನೈಷ್ಕರ್ಮ್ಯ ನಿರ್ಭಾಬನ್ಧ-

ಭಾವಾದೇಹಸ್ಥ ಯೋಗಿನಃ||

ಸಂಯೋಗಾಯೋಗ ವಿರಹಾ-

ದಹಮಾಸೇ ಯಥಾಸುಖಮ್||೪||

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Ashtavakra Gita

Chapter 13

Stanza 4

The yogis who are attached to the body insist upon action or inaction. Owing to the absence of association and dissociation, I live happily.

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