Tuesday, 18 April 2023

तात चिन्मात्र रूपोऽसि

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक १२

तात चिन्मात्र रूपोऽसि न ते भिन्नमिदं जगत्।।

अतः कस्य कथं कुत्र हेयोपादेयकल्पना।।१३।।

(तात! चिन्मात्र रूपः असि न ते भिन्नं इदं जगत्। अतः कस्य कथं कुत्र हेय-उपादेय कल्पना।।)

अर्थ : वत्स!  तुम केवल शुद्ध चैतन्य मात्र हो, और जगत् तुमसे भिन्न नहीं है, इसलिए कौन है जो, जिसके लिए, जहाँ कुछ हेय (त्याज्य) और उपादेय (ग्राह्य) है, कल्पना की जाना संभव है! 

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೧೨

ತಾತ ಚಿನ್ಮಾತ್ರ ರೂಪೋऽಸಿ ನ ತೇ ಭಿನ್ನಮಮಿದಂ ಜಗತ್ ||

ಅತಃ ಕಸ್ಯ ಕಥಂ ಕುತ್ರ ಹೇಯೋಪಾದೇಯಕಲ್ಪನಾ||೧೨||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza 12

My Child, you are pure Intelligence itself, this universe is nothing different from you. Therefore who will accept or reject! And how and where he do so !

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