Sunday, 16 April 2023

गुणैः संवेष्टितो देह

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक ९

गुणैः संवेष्टितो देहस्तिष्ठत्यायाति याति च||

आत्मा न गन्ता नागन्ता किमेनमनुशोचसि||९||

(गुणैः संवेष्टितः देहः तिष्ठति आयाति याति च। आत्मा न गन्ता न आगन्ता किं एनं अनुशोचति।।)

अर्थ : (प्रकृति के तीनों) गुणों द्वारा संश्लिष्ट (ज्ञानेन्द्रियों आदि के माध्यम से) देह ही व्यक्त रूप लेकर विद्यमान, आती और जाती हुई प्रतीत होती है। आत्मा न तो जाती है और न आती है, इसके लिए क्यों व्यर्थ शोक करें!

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೯

ಗುಣೈಃ ಸಂವೇಷ್ಟಿತೋ ದೇಹಸ್ತಿಷ್ಠತ್ಯಾಯಾತಿ ಯಾತಿ ಚ||

ಆತ್ಮಾ ನ ಗನ್ತಾ ನಾಗನ್ತಾ ಕಿಮೇನಮನುಶೋಚಸಿ||೯||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza

The body bound up with the organs of senses comes stays and goes. The Self neither comes nor goes. Why do you then mourn it!

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