अष्टावक्र गीता
अध्याय १५
श्लोक ९
गुणैः संवेष्टितो देहस्तिष्ठत्यायाति याति च||
आत्मा न गन्ता नागन्ता किमेनमनुशोचसि||९||
(गुणैः संवेष्टितः देहः तिष्ठति आयाति याति च। आत्मा न गन्ता न आगन्ता किं एनं अनुशोचति।।)
अर्थ : (प्रकृति के तीनों) गुणों द्वारा संश्लिष्ट (ज्ञानेन्द्रियों आदि के माध्यम से) देह ही व्यक्त रूप लेकर विद्यमान, आती और जाती हुई प्रतीत होती है। आत्मा न तो जाती है और न आती है, इसके लिए क्यों व्यर्थ शोक करें!
--
ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಯಾಯ ೧೫
ಶ್ಲೋಕ ೯
ಗುಣೈಃ ಸಂವೇಷ್ಟಿತೋ ದೇಹಸ್ತಿಷ್ಠತ್ಯಾಯಾತಿ ಯಾತಿ ಚ||
ಆತ್ಮಾ ನ ಗನ್ತಾ ನಾಗನ್ತಾ ಕಿಮೇನಮನುಶೋಚಸಿ||೯||
--
Ashtavakra Gita
Chapter 15
Stanza
The body bound up with the organs of senses comes stays and goes. The Self neither comes nor goes. Why do you then mourn it!
--
No comments:
Post a Comment