अष्टावक्र गीता
अध्याय १६
श्लोक ६
विरक्तो विषयद्वेष्टा रागी विषयलोलुपः।।
ग्रहमोक्षविहीनस्तु न विरक्तो न रागवान्।।६।।
(विरक्तः विषयद्वेष्टा रागी विषयलोलुपः। ग्रहमोक्षविहीनः तु न विरक्तः न रागवान्।।)
अर्थ : जिसे विषयों से द्वेष होता है वह विरागयुक्त होता है, उसे विषयों के संपर्क में आने तक से अरुचि होती है। और विषयों में जिसे रस होता है, वह विषयलोलुप होता है अर्थात् विषयों का उपभोग करने के लिए लालायित रहता है। किन्तु जिसे विषयों से न राग और न ही विराग होता है ऐसा वैराग्ययुक्त मनुष्य सभी विषयों से उदासीन अनासक्त होता है।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೬
ಶ್ಲೋಕ ೬
ವಿರೊರತೋ ವಿಷಯದ್ವೇಷ್ಟಾ
ರಾಗೀ ವಿಷಯಲೋಲುಪಃ||
ಗ್ರಹಮೋಕ್ಷವಿಹೀನಸ್ತು
ನ ವಿರೊಅತೋ ನ ರಾಗವಾನ್||೬||
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Ashtavakra Gita
Chapter 16
Stanza 6
One who abhors the sense-objects, avoids them, and one who covets them, becomes attached to them. But he who does not accept or reject, is neither unattached nor attached.
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