अष्टावक्र गीता
अध्याय १७
श्लोक ६
धर्मार्थकाममोक्षेषु जीविते मरणे तथा।।
कस्याप्युदारचित्तस्य हेयोपादेयता न हि।।६।।
(धर्म अर्थ काम मोक्षेषु जीविते मरणे तथा। कस्य अपि उदार-चित्तस्य हेयोपादेयता न हि।।)
अर्थ : किसी उदारचित्त की दृष्टि में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष (इन चारों पुरुषार्थों के) तथा जीवन और मृत्यु की भी न हेयता और न ही उपादेयता होती है। वह इन सबसे उदासीन होता है क्योंकि उसे इन सबसे कोई प्रयोजन ही नहीं होता।
--
ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೭
ಶ್ಲೋಕ ೬
ಧರ್ಮಾರ್ಥಕಾಮಮೋಕ್ಷೇಷು ಜೀವಿತೇಚ್ಛಾ ಮರಣ ತಥಾ||
ಕಸ್ಯಾಪ್ಯುದಾರಚಿತ್ತಸ್ಯ ಹೇಯೋಪಾದೇಯತಾ ನ ಹಿ||೬||
--
Ashtavakra Gita
Chapter 17
Stanza 6
It is only some broad-minded person who has neither attraction for nor aversion to Dharma, Artha, Kama and Moksha as well as life and death.
--
No comments:
Post a Comment