Friday, 12 May 2023

धर्मार्थकाममोक्षेषु

अष्टावक्र गीता

अध्याय १७

श्लोक ६

धर्मार्थकाममोक्षेषु जीविते मरणे तथा।।

कस्याप्युदारचित्तस्य हेयोपादेयता न हि।।६।।

(धर्म अर्थ काम मोक्षेषु जीविते मरणे तथा। कस्य अपि उदार-चित्तस्य हेयोपादेयता न हि।।)

अर्थ : किसी उदारचित्त की दृष्टि में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष (इन चारों पुरुषार्थों के) तथा जीवन और मृत्यु की भी न हेयता  और न ही उपादेयता होती है। वह इन सबसे उदासीन होता है क्योंकि उसे इन सबसे कोई प्रयोजन ही नहीं होता। 

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೭

ಶ್ಲೋಕ ೬

ಧರ್ಮಾರ್ಥಕಾಮಮೋಕ್ಷೇಷು ಜೀವಿತೇಚ್ಛಾ ಮರಣ ತಥಾ||

ಕಸ್ಯಾಪ್ಯುದಾರಚಿತ್ತಸ್ಯ ಹೇಯೋಪಾದೇಯತಾ ನ ಹಿ||೬||

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Ashtavakra Gita

Chapter 17

Stanza 6

It is only some broad-minded person who has neither attraction for nor aversion to Dharma, Artha, Kama and Moksha as well as life and death.

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