अष्टावक्र गीता
अध्याय १७
श्लोक ११
सर्वत्र दृश्यते स्वस्थः सर्वत्र विमलाशयः।।
समस्तवासनामुक्तो मुक्तः सर्वत्र राजते।।११।।
(सर्वत्र दृश्यते स्वस्थः सर्वत्र विमलाशयः। समस्तवासनामुक्तः मुक्तः सर्वत्र राजते।।)
अर्थ : मुक्त पुरुष सर्वत्र ही अपने स्वरूप में स्थित होता है, (वह उस स्थिति से च्युत नहीं होता अतः उसे ही अच्युत कहते हैं।) उसका हृदय सर्वत्र ही शुद्ध, अतः वासना-मात्र से रहित, निर्मल होने से सर्वत्र उसका ही प्रकाश है।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೭
ಶ್ಲೋಕ ೧೧
ಸರ್ವತ್ರ ದೃಶ್ಯತೇ ಸ್ವಸ್ಥಃ
ಸರ್ವತ್ರ ವಿಮಲಾಶಯಃ||
ಸಮಸ್ತವಾಸನಾಮುಕ್ತೋ
ಮುಕ್ತಃ ಸರ್ವತ್ರ ರಾಜತೇ||೧೧||
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Ashtavakra Gita
Chapter 17
Stanza 11
The liberated person is found everywhere abiding in Self and pure in heart, and he lives everywhere freed from all desires.
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