अष्टावक्र गीता
अध्याय १७
श्लोक ३
न जातु विषयाः केऽपि स्वारामं हर्षयन्त्यमी।।
सल्लकीपल्लवप्रीतमिवेभं निम्बपल्लवाः।।३।।
(न जातु विषयाः के अपि स्वारामं हर्षयन्ति अमी। सल्लकी पल्लवप्रीतं इव इभं निम्बपल्लवाः।।)
अर्थ : जैसे शल्लकी / सल्लकी (शालवृक्ष) के पत्तों का रुचि से भक्षण करनेवाले हाथियों को नीम के पत्तों से अरुचि होती है, उसी प्रकार अपनी आत्मा में प्रसन्नता से रमण करनेवाले पुरुषों को इन्द्रिय-विषयों में कोई रुचि नहीं होती।
आयुर्वेद के वागभट् रचित ग्रन्थ अष्टाध्यायी में इस वनस्पति का वर्णन इस प्रकार से है :
शल्लकी नामानि --
शल्लकी गजभक्षा च गजप्रिया च ह्लादिनी।।
महारूहा वसामोचा सुरभी सुरभीरसा।।
(वटादिवर्ग)
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೭
ಶ್ಲೋಕ ೩
ನ ಜಾತು ವಿಷಯಾಃ ಕೇऽಪಿ
ಸ್ವಾರಾಮಂ ಹರ್ಷಯನ್ತ್ಯಮೀ||
ಸಲ್ಲಕೀ ಪಲ್ಲವಪ್ರೀತ-
ಮಿವೇಭಂ ನಿಮ್ಬಪಲ್ಲವಾಃ||೩||
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Ashtavakra Gita
Chapter 17
Stanza 3
No sense-objects ever please home who delights in Self even as the leaves of the Neem-tree don't please and elephant who delights in the Sallaki leaves.
(Sallaki : Boswelia Therifera).
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