Tuesday, 9 May 2023

न जातु विषयाः केऽपि

अष्टावक्र गीता

अध्याय १७

श्लोक ३

न जातु विषयाः केऽपि स्वारामं हर्षयन्त्यमी।।

सल्लकीपल्लवप्रीतमिवेभं निम्बपल्लवाः।।३।।

(न जातु विषयाः के अपि स्वारामं हर्षयन्ति अमी। सल्लकी पल्लवप्रीतं इव इभं निम्बपल्लवाः।।)

अर्थ : जैसे शल्लकी / सल्लकी (शालवृक्ष) के पत्तों का रुचि से भक्षण करनेवाले हाथियों को नीम के पत्तों से अरुचि होती है, उसी प्रकार अपनी आत्मा में प्रसन्नता से रमण करनेवाले पुरुषों को इन्द्रिय-विषयों में कोई रुचि नहीं होती।

आयुर्वेद के वागभट् रचित ग्रन्थ अष्टाध्यायी में इस वनस्पति का वर्णन इस प्रकार से है :

शल्लकी नामानि --

शल्लकी गजभक्षा च गजप्रिया च ह्लादिनी।।

महारूहा वसामोचा सुरभी सुरभीरसा।।

(वटादिवर्ग)

--

ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೭

ಶ್ಲೋಕ ೩

ನ ಜಾತು ವಿಷಯಾಃ ಕೇऽಪಿ

ಸ್ವಾರಾಮಂ ಹರ್ಷಯನ್ತ್ಯಮೀ||

ಸಲ್ಲಕೀ ಪಲ್ಲವಪ್ರೀತ-

ಮಿವೇಭಂ ನಿಮ್ಬಪಲ್ಲವಾಃ||೩||

--

Ashtavakra Gita

Chapter 17

Stanza 3

No sense-objects ever please home who delights in Self even as the leaves of the Neem-tree don't please and elephant who delights in the Sallaki leaves.

(Sallaki : Boswelia Therifera).

***

No comments:

Post a Comment