अष्टावक्र गीता
अध्याय १६
श्लोक ८
प्रवृत्तौ जायते रागो निवृत्तौ द्वेष एव हि।।
निर्द्वन्द्वो बालवद्धीमानेवमेव व्यवस्थितः।।८।।
(प्रवृत्तौ जायते रागः निवृत्तौ द्वेष एव हि। निर्द्वन्द्वः बालवत् धीमान् एवं एव व्यवस्थितः।।)
अर्थ : विषयों में प्रवृत्ति होने पर उनके प्रति राग उत्पन्न होता है, और निवृत्ति होने पर उनके प्रति द्वेष, कोई निर्द्वन्द्व और राग-द्वेष से रहित पुरुष किसी बालक की तरह सदा ही सामञ्जस्य रखते हुए राग-द्वेष से दूर ही रहता है।
(श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय १४ के श्लोक का सन्दर्भ दृष्टव्य है :
प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव।।
न द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति।।२२।।
अर्थात् वह राग तथा द्वेष से अछूता रहता है।)
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧಯಾಯ ೧೬
ಶ್ಲೋಕ ೮
ಪ್ರವೃತ್ತೌ ಜಾಯತೇ ರಾಗೋ ನಿವೃತ್ತೌ ದ್ವೇಷ ಏವ ಹಿ ||
ನಿರ್ದ್ವನ್ದ್ವೋ ಬಾಲವದ್ಧೀಮಾನೇವಮೇವ ವ್ಯವಸ್ಥಿತಃ||೮||
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Ashtavakra Gita
Chapter 16
Stanza 8
Involvement / indulgence (in activity) begets attachment, abstention from it aversion. The man of wisdom, like a child; is free from the pairs of opposites and is thus established (in the Self).
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