अष्टावक्र गीता
अध्याय १६
श्लोक १०
यस्याभिमानो मोक्षेऽपि देहेऽपि ममता तथा।।
न च ज्ञानी न वा योगी केवलं दुःखभागसौ।।१०।।
(यस्य अभिमानः मोक्षे अपि देहे अपि ममता तथा। न च ज्ञानी न वा योगी केवलं दुःखभाक् असौ।।)
अर्थ : जिसे (मोक्ष प्राप्त कर लिया है, या प्राप्त करना है), इस प्रकार का अभिमान है, तथा जिसे देह में ममत्व है, न तो ज्ञानी, और न योगी होता है, वह तो केवल दुःख का ही भागी होता है।
(सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्।।
... या कश्चिद्दुःखमाप्नुयात्।।)
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೬
ಶ್ಲೋಕ ೧೦
ಯಸ್ಯಾಭಿಮಾನೋ ಮೋಕ್ಷೇऽಪಿ
ದೇಹೇऽಪಿ ಮಮತಾ ತಥಾ||
ನ ಚ ಜ್ಞಾನೀ ನ ವಾ ಯೋಗೀ
ಕೇವಲಂ ದುಃಖಭಾಗಸೌ||೧೦||
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Ashtavakra Gita
Chapter 16
Stanza 10
He who has an egoistic feeling even towards liberation and considers even the body as his own, is neither a Jnani or a Yogi.
He only suffers misery.
(One who thinks liberation as a goal to be achieved, or feels he has attained this goal.)
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