Friday, 5 May 2023

यस्याभिमानो मोक्षेऽपि

अष्टावक्र गीता

अध्याय १६

श्लोक १०

यस्याभिमानो मोक्षेऽपि देहेऽपि ममता तथा।।

न च ज्ञानी न वा योगी केवलं दुःखभागसौ।।१०।।

(यस्य अभिमानः मोक्षे अपि देहे अपि ममता तथा। न च ज्ञानी न वा योगी केवलं दुःखभाक् असौ।।)

अर्थ : जिसे (मोक्ष प्राप्त कर लिया है, या प्राप्त करना है), इस प्रकार का अभिमान है, तथा जिसे देह में ममत्व है, न तो ज्ञानी, और न योगी होता है, वह तो केवल दुःख का ही भागी होता है।

(सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्।।

... या कश्चिद्दुःखमाप्नुयात्।।)

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೬

ಶ್ಲೋಕ ೧೦

ಯಸ್ಯಾಭಿಮಾನೋ ಮೋಕ್ಷೇऽಪಿ

ದೇಹೇऽಪಿ ಮಮತಾ ತಥಾ||

ನ ಚ ಜ್ಞಾನೀ ನ ವಾ ಯೋಗೀ

ಕೇವಲಂ ದುಃಖಭಾಗಸೌ||೧೦||

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Ashtavakra Gita

Chapter 16

Stanza 10

He who has an egoistic feeling even towards liberation and considers even the body as his own, is neither a Jnani or a Yogi.

He only suffers misery.

(One who thinks liberation as a goal to be achieved, or feels he has attained this goal.)

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