अष्टावक्र गीता
अध्याय १७
श्लोक ४
यस्तु भोगेषु भुक्तेषु न भवत्यधिवासिता।।
अभुक्तेषु निराकांक्षी तादृशो भवदुर्लभः।।४।।
(यः तु भोगेषु भुक्तेषु न भवति अधिवासिता। अभुक्तेषु निराकांक्षी तादृशः भवदुर्लभः।।)
अर्थ : जिन विषयों का भोग किया गया भोगों को पुनः प्राप्त करने की लालसा, और जिनका भोग नहीं किया गया, उन्हें भी प्राप्त करने की आकांक्षा जिसे नहीं होती, संसार में ऐसा कोई दुर्लभ ही होता है।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೭
ಶ್ಲೋಕ ೪
ಯಸ್ತು ಭೋಗೇಷು ಭುಕ್ತೇಷು ನ ಭವತ್ಯಧಿವಾಸಿತಾ||
ಅಭುಕ್ತೇಷು ನಿರಾಕಾಂಕ್ಷೀ ತಾದೃಶೋ ಭವದುರ್ಲಭಃ||೪||
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Ashtavakra Gita
Chapter 17
Stanza 4
Rare in the world is one who does not covet things which he has enjoyed or does not desire things which he has not enjoyed.
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