Friday, 12 May 2023

बुभुक्षुरिह संसारे

अष्टावक्र गीता

अध्याय १७

श्लोक ५

बुभुक्षुरिह संसारे मुमुक्षरपि दृश्यते।।

भोगमोक्षनिराकाङ्क्षी विरलो हि महाशयः।।५।।

(बुभुक्षुः इह संसारे मुमुक्षुः अपि दृश्यते। भोगमोक्ष-निराकाङ्क्षी विरलः हि महाशयः।।)

अर्थ : यहाँ, इस संसार में भोग की कामना रखनेवाले और मोक्ष की प्राप्ति की कामना रखनेवाले भी दिखलाई पड़ते हैं। किन्तु ऐसा कोई बिरला ही महात्मा होता है, जिसे न तो भोगों की और न ही मोक्ष प्राप्ति की आकांक्षा होती हो।

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माण्डूक्य उपनिषद् गौडपादीय कारिका,

वैतथ्य प्रकरण : ३२

न निरोधो न चोत्पत्तिर्न बद्धो न च साधकः।।

न मुमुक्षुर्न वै मुक्त इत्येषा परमार्थता।।३२।।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೭

ಶ್ಲೋಕ ೫

ಬುಭುಕ್ಷುರಿಹ ಸಂಸಾರೇ

ಮುಮುಕ್ಷುರಪಿ ದೃಶ್ಯತೇ||

ಭೋಗಮೋಕ್ಷನಿರಾಕಾಂಕ್ಷೀ

ವಿರಲೋ ಹಿ ಮಹಾಶಯಃ||೫||

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Ashtavakra Gita

Chapter 17

Stanza 5

One desirous of worldly enjoyments and one desirous of liberation are both found in this world. But rare is the great-souled one who is not desirous of either enjoyment or liberation.

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