अष्टावक्र गीता
अध्याय १७
श्लोक ५
बुभुक्षुरिह संसारे मुमुक्षरपि दृश्यते।।
भोगमोक्षनिराकाङ्क्षी विरलो हि महाशयः।।५।।
(बुभुक्षुः इह संसारे मुमुक्षुः अपि दृश्यते। भोगमोक्ष-निराकाङ्क्षी विरलः हि महाशयः।।)
अर्थ : यहाँ, इस संसार में भोग की कामना रखनेवाले और मोक्ष की प्राप्ति की कामना रखनेवाले भी दिखलाई पड़ते हैं। किन्तु ऐसा कोई बिरला ही महात्मा होता है, जिसे न तो भोगों की और न ही मोक्ष प्राप्ति की आकांक्षा होती हो।
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माण्डूक्य उपनिषद् गौडपादीय कारिका,
वैतथ्य प्रकरण : ३२
न निरोधो न चोत्पत्तिर्न बद्धो न च साधकः।।
न मुमुक्षुर्न वै मुक्त इत्येषा परमार्थता।।३२।।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೭
ಶ್ಲೋಕ ೫
ಬುಭುಕ್ಷುರಿಹ ಸಂಸಾರೇ
ಮುಮುಕ್ಷುರಪಿ ದೃಶ್ಯತೇ||
ಭೋಗಮೋಕ್ಷನಿರಾಕಾಂಕ್ಷೀ
ವಿರಲೋ ಹಿ ಮಹಾಶಯಃ||೫||
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Ashtavakra Gita
Chapter 17
Stanza 5
One desirous of worldly enjoyments and one desirous of liberation are both found in this world. But rare is the great-souled one who is not desirous of either enjoyment or liberation.
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