अष्टावक्र गीता
अध्याय १७
श्लोक १३
न निन्दति न च स्तौति न हृष्यति न कुप्यति।।
न ददाति न गृह्णाति मुक्तः सर्वत्र नीरसः।।
(न निन्दति न च स्तौति न हृष्यति न कुप्यति। न ददाति न गृह्णाति मुक्तः सर्वत्र नीरसः।।)
अर्थ : मुक्त पुरुष न तो किसी की निन्दा करता है और न स्तुति। न वह हर्षित होता है न क्रुद्ध न किसी को कुछ देता है, न किसी से कुछ लेता है। मुक्त पुरुष की रुचि किसी भी विषय में नहीं होती, वह सर्वत्र और सबसे ही उदासीन होता है।
--
ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೭
ಶ್ಲೋಕ ೧ಯಜ
ನ ನಿನ್ದಾಯಾಂ ನ ಚ ಸ್ತೌತಿ ನ ಹೃಷ್ಯತಿ ನ ಟುಪ್ಯತಿ||
ನ ದದಾತಿ ನ ಗೃಹ್ಣಾತಿ ಮುಕ್ತಃ ಸಲವತ್ಲ ನೀರಸಃ||೧೩||
--
Ashtavakra Gita
Chapter 17
Stanza 13
The liberated man neither slanders nor praises, neither rejoices nor is angry, neither gives nor takes. He is everywhere free from. attachment.
***
No comments:
Post a Comment