Saturday, 20 May 2023

न निन्दति न च स्तौति

अष्टावक्र गीता

अध्याय १७

श्लोक १३

न निन्दति न च स्तौति न हृष्यति न कुप्यति।।

न ददाति न गृह्णाति मुक्तः सर्वत्र नीरसः।।

(न निन्दति न च स्तौति न हृष्यति न कुप्यति। न ददाति न गृह्णाति मुक्तः सर्वत्र नीरसः।।) 

अर्थ : मुक्त पुरुष न तो किसी की निन्दा करता है और न स्तुति। न वह हर्षित होता है न क्रुद्ध न किसी को कुछ देता है, न किसी से कुछ लेता है। मुक्त पुरुष की रुचि किसी भी विषय में नहीं होती, वह सर्वत्र और सबसे ही उदासीन होता है।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೭

ಶ್ಲೋಕ ೧ಯಜ

ನ ನಿನ್ದಾಯಾಂ ನ ಚ ಸ್ತೌತಿ ನ ಹೃಷ್ಯತಿ ನ ಟುಪ್ಯತಿ||

ನ ದದಾತಿ ನ ಗೃಹ್ಣಾತಿ ಮುಕ್ತಃ ಸಲವತ್ಲ ನೀರಸಃ||೧೩||

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Ashtavakra Gita

Chapter 17

Stanza 13

The liberated man neither slanders nor praises, neither rejoices nor is angry, neither gives nor takes. He is everywhere free from. attachment.

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