अष्टावक्र गीता
अध्याय ४
श्लोक १
अष्टावक्र उवाच --
हन्तात्मज्ञस्य धीरस्य खेलतो भोगलीलया।।
न हि संसारवाहीकैर्मूढैः सह समानता।।१।।
(हन्त आत्मज्ञस्य धीरस्य खेलतः भोगलीलया। न हि संसारवाहीकैः मूढैः सह समानता।।)
अर्थ : अष्टावक्र ने कहा :
अब, उस आत्मज्ञ धीर के आचरण के बारे में, जो कि अनायास भोगों, लीलाओं आदि में रमता प्रतीत होता है। किसी दूसरे और सांसारिक मूढ से उसकी कोई समानता कदापि नहीं हो सकती।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೪
ಶ್ಲೋಕ ೧
ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಉವಾಚ :
ಹನ್ತಾತ್ಮಜ್ಞಸ್ಯ ಧೀರಸ್ಯ ಖೇಲತೋ ಭೋಗಲೀಲಯಾ||
ನ ಹಿ ಸಂಸಾರವಾಹೀಕೈರ್ಮೂಢೈಃ ಸಹಸಮಾನತಾ||೧||
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Ashtavakra Gita
Chapter 4
Stanza 1
Ashtavakra said :
Oh! The intelligent minded one, -the knower of Self plays the game of enjoyment, has no similarity to the deluded beasts of the world.
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