Thursday, 5 January 2023

अन्तस्त्यक्तकषायस्य

अष्टावक्र गीता

अध्याय ३

श्लोक १४

अन्तस्त्यक्तकषायस्य निर्द्वन्द्वस्य निराशिषः।।

यदृच्छया गतो भोगो न दुःखाय न तुष्टये।।१४।।

।।इति तृतीयोऽध्यायः।।

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(अन्तस् त्यक्त कषायस्य निर्द्वन्द्वस्य निराशिषः। यदृच्छया गतः भोगः न दुःखाय न तुष्टये।। निराशिन् - निराशिष् - निराशिषः - त्यक्ता-आशा यस्य)

अर्थ : जिसने अन्तःकरण के कषायों को त्याग दिया है, समस्त द्वन्द्वों से जो ऊपर उठ चुका है, नियति / अज्ञात प्रारब्ध से प्राप्त होनेवाले भोगों से वह न तो दुःखी होता है, और न ही प्रसन्न या असन्तुष्ट होता है।

अष्टावक्र गीता का तृतीय अध्याय पूर्ण ।। 

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೩

ಶ್ಲೋಕ ೧೪

ಅನ್ತಸ್ತ್ಯಕಷಾಯಸ್ಯ

ನಿರ್ದ್ವನ್ದಸ್ಯ ನಿರಾಶಿಷಃ||

ಯದೃಚ್ಛಯಾ ಗತೋ ಭೋಗೋ

ನ ದುಃಖಾಯ ನ ತುಷ್ಟಯೇ||೧೪||

||ಇತಿ ತೃತೀಯೋಧ್ಯಾಯಃ||

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Ashtavakra Gita

Chapter 3

Stanza 14

He, who has given up worldly attachment in his mind, who is beyond the pairs of opposites, and who is free from desire, any experience coming as a matter of course owing to fate, does not cause either pleasure or pain to him. 

Thus concludes the chapter 3 of the Ashtavakra Gita.

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