अष्टावक्र गीता
अध्याय ३
श्लोक १४
अन्तस्त्यक्तकषायस्य निर्द्वन्द्वस्य निराशिषः।।
यदृच्छया गतो भोगो न दुःखाय न तुष्टये।।१४।।
।।इति तृतीयोऽध्यायः।।
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(अन्तस् त्यक्त कषायस्य निर्द्वन्द्वस्य निराशिषः। यदृच्छया गतः भोगः न दुःखाय न तुष्टये।। निराशिन् - निराशिष् - निराशिषः - त्यक्ता-आशा यस्य)
अर्थ : जिसने अन्तःकरण के कषायों को त्याग दिया है, समस्त द्वन्द्वों से जो ऊपर उठ चुका है, नियति / अज्ञात प्रारब्ध से प्राप्त होनेवाले भोगों से वह न तो दुःखी होता है, और न ही प्रसन्न या असन्तुष्ट होता है।
अष्टावक्र गीता का तृतीय अध्याय पूर्ण ।।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೩
ಶ್ಲೋಕ ೧೪
ಅನ್ತಸ್ತ್ಯಕಷಾಯಸ್ಯ
ನಿರ್ದ್ವನ್ದಸ್ಯ ನಿರಾಶಿಷಃ||
ಯದೃಚ್ಛಯಾ ಗತೋ ಭೋಗೋ
ನ ದುಃಖಾಯ ನ ತುಷ್ಟಯೇ||೧೪||
||ಇತಿ ತೃತೀಯೋಧ್ಯಾಯಃ||
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Ashtavakra Gita
Chapter 3
Stanza 14
He, who has given up worldly attachment in his mind, who is beyond the pairs of opposites, and who is free from desire, any experience coming as a matter of course owing to fate, does not cause either pleasure or pain to him.
Thus concludes the chapter 3 of the Ashtavakra Gita.
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