Monday, 30 January 2023

तदा मुक्तिर्यदा चित्तं

अष्टावक्र गीता

अध्याय ८

श्लोक २

पहले श्लोक में बन्ध / बन्धन का स्वरूप स्पष्ट करने के बाद इस श्लोक २ में मुक्ति के स्वरूप को इंगित किया जा रहा है :

तदा मुक्तिर्यदा चित्तं न वाञ्छति न शोचति।।

न मुञ्चति न गृह्णाति न हृष्यति न कुप्यति।।२।।

(तदा मुक्तिः यदा चित्तं न वाञ्छति न शोचति। न मुञ्चति न गृह्णाति न हृष्यति न कुप्यति।।)

अर्थ : मुक्ति तब होती है जब चित्त में न तो कोई कामना होती है, और न कोई चिन्ता, जब चित्त न तो परिग्रह करता है और न ही कुछ अस्वीकार करता है।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೮

ಶ್ಲೋಕ ೨

ತದಾ ಮುಕ್ತಿರ್ಯದಾಚಿತ್ತಂ ನ ವಾಞ್ಛತಿ ನ ಶೋಚತಿ||

ನ ಮುಞಚತಿ ನ ಗರ್ಹ್ಣಾತಿ ನ ಹೃಷ್ಯತಿ ನ ಕುಪ್ಯತಿ||೨||

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Ashtavakra Gita

Chapter 8

Stanza 2

(And) It is liberation when the mind neither desires nor grieves, neither rejects nor feels happy or angry.

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