अष्टावक्र गीता
अध्याय ८
श्लोक २
पहले श्लोक में बन्ध / बन्धन का स्वरूप स्पष्ट करने के बाद इस श्लोक २ में मुक्ति के स्वरूप को इंगित किया जा रहा है :
तदा मुक्तिर्यदा चित्तं न वाञ्छति न शोचति।।
न मुञ्चति न गृह्णाति न हृष्यति न कुप्यति।।२।।
(तदा मुक्तिः यदा चित्तं न वाञ्छति न शोचति। न मुञ्चति न गृह्णाति न हृष्यति न कुप्यति।।)
अर्थ : मुक्ति तब होती है जब चित्त में न तो कोई कामना होती है, और न कोई चिन्ता, जब चित्त न तो परिग्रह करता है और न ही कुछ अस्वीकार करता है।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೮
ಶ್ಲೋಕ ೨
ತದಾ ಮುಕ್ತಿರ್ಯದಾಚಿತ್ತಂ ನ ವಾಞ್ಛತಿ ನ ಶೋಚತಿ||
ನ ಮುಞಚತಿ ನ ಗರ್ಹ್ಣಾತಿ ನ ಹೃಷ್ಯತಿ ನ ಕುಪ್ಯತಿ||೨||
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Ashtavakra Gita
Chapter 8
Stanza 2
(And) It is liberation when the mind neither desires nor grieves, neither rejects nor feels happy or angry.
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