अष्टावक्र गीता
अध्याय ६
श्लोक ४
अहं वा सर्वभूतेषु सर्वभूतान्यथो मयि।।
इति ज्ञानं तथैतस्य न त्यागो न ग्रहो लयः।।४।।
(अहं वा सर्वभूतेषु सर्वभूतानि अथो / अथ-उ मयि। इति ज्ञानं तथा एतस्य न त्यागः न ग्रहः लयः।।)
अर्थ : आत्मा सभी भूतों में अवस्थित और सभी भूत भी मुझ आत्मा में ही अवस्थित हैं। यह भान अपना / आत्मा का ज्ञान है, जो सदा से प्राप्त ही है और जिसे प्राप्त नहीं किया जाना होता, जिसे न तो त्यागा जा सकता है और जो कभी विलुप्त भी नहीं हो सकता।
।।इति षष्ठाध्यायः।।
§ श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय १८ --
सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते।।
अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्त्विकम्।।२०।।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೬
ಶ್ಲೋಕ ೪
ಅಹಂ ವಾ ಸರ್ವಭೂತೇಷು
ಸರ್ವಭೂತಾನ್ಯಥೋ ಮಯಿ||
ಇತಿ ಜ್ಟಾನಂ ತಥೈತಸ್ಯ
ನ ತ್ಯಾಗೋ ನ ಗ್ರಹೋ ಲಯಃ||೪||
||ಇತಿ ಷಷ್ಠಾಧ್ಯಾಯಃ||
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Ashtavakra Gita
Chapter 6
Stanza 4
I am (The Self is) indeed in all beings and all beings are in Me (The Self). This awareness is Knowledge. So it has neither to be given up, nor to be regained, nor is forgotten / lost.
Thus concludes the chapter 6 of this text :
Ashtavakra Gita.
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