Wednesday, 4 January 2023

स्वभावादेव जानानो

अष्टावक्र गीता

अध्याय ३

श्लोक १३

स्वभावादेव जानानो दृश्यमेतन्न किञ्चन।।

इदं ग्राह्यमिदं त्याज्यं स किं पश्यति धीरधीः।।१३।।

(स्वभावात् एव जानानः दृश्यं एतत् न किञ्चन। इदं ग्राह्यं इदं त्याज्यं सः किं पश्यति धीरधीः।।)

अर्थ : जो यह जानते हैं कि यह समस्त दृश्यमात्र (प्रपञ्च) ही मिथ्या आभास है, वस्तुतः अस्तित्वशून्य है, ऐसे स्थिरबुद्धि और विवेकी मनुष्य में "यह ग्राह्य है और यह त्याज्य है।" इस प्रकार की दृष्टि होती ही नहीं, अतः उसके लिए यह प्रश्न भी नहीं होता।

(सन्दर्भ : श्रीमद्भगवद्गीता 5/14, 10/8)

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೩

ಶ್ಲೋಕ ೧೩

ಸ್ವಭಾವಾದೇವ ಜಾನಾನೋ

ದೃಶ್ಯಮೇತನ್ನ ಕಿಞ್ಚನ||

ಇದಂ ಗ್ರಾಹ್ಯಮಿದಂ ತ್ಯಾಜ್ಯಂ

ಸ ಕಿಂ ಪಶ್ಯತಿ ಧೀರಧೀಃ||೧೩||

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Ashtavakra Gita

Chapter 3

Stanza 13

Why should that steady-minded one, - who knows the Object to be in its very nature nothing, consider this fit to be accepted and that to be rejected. 

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