अष्टावक्र गीता
अध्याय ४
श्लोक ४
आत्मैवेदं जगत्सर्वं ज्ञातं येन महात्मना।।
यदृच्छया वर्तमानं तं निषेद्धुं क्षमेत कः।।४।।
(आत्मा एव इदं जगत् सर्वं ज्ञातं येन महात्मना। यदृच्छया वर्तमानं तं निषेद्धुं क्षमेत कः।।)
अर्थ : जिसने यह जान लिया है कि आत्मा ही यह सारा जगत् है, उसे सहज-स्फूर्त स्वाभाविक नियति से होनेवाले उसके कार्यों और क्रिया-कलापों को करने से रोकने का सामर्थ्य किसमें है!
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೪
ಶ್ಲೋಕ ೪
ಆತ್ಮೈವೇದಂ ಜಗತ್ಸರ್ವಂ
ಜ್ಞಾತಂ ಯೇನ ಮಹಾತ್ಮನಾ||
ಯದೃಚ್ಛಯಾ ವರ್ತಮಾನಂ ತಂ
ನಿಷೇದ್ಧೀಂ ಕ್ಷಮೇತ ಕಃ||೪||
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Ashtavakra Gita
Chapter 4
Stanza 4
Who can prohibit the great-souled one who has known this entire universe to be the Self alone, from living as he pleases!
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