Monday, 9 January 2023

आत्मैवेदं जगत्सर्वम्

अष्टावक्र गीता

अध्याय ४

श्लोक ४

आत्मैवेदं जगत्सर्वं ज्ञातं येन महात्मना।।

यदृच्छया वर्तमानं तं निषेद्धुं क्षमेत कः।।४।।

(आत्मा एव इदं जगत् सर्वं ज्ञातं येन महात्मना। यदृच्छया वर्तमानं तं निषेद्धुं क्षमेत कः।।)

अर्थ : जिसने यह जान लिया है कि आत्मा ही यह सारा जगत् है, उसे सहज-स्फूर्त स्वाभाविक नियति से होनेवाले उसके कार्यों और क्रिया-कलापों को करने से रोकने का सामर्थ्य किसमें है!

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೪

ಶ್ಲೋಕ ೪

ಆತ್ಮೈವೇದಂ ಜಗತ್ಸರ್ವಂ

ಜ್ಞಾತಂ ಯೇನ ಮಹಾತ್ಮನಾ||

ಯದೃಚ್ಛಯಾ ವರ್ತಮಾನಂ ತಂ

ನಿಷೇದ್ಧೀಂ ಕ್ಷಮೇತ ಕಃ||೪||

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Ashtavakra Gita 

Chapter 4

Stanza 4

Who can prohibit the great-souled one who has known this entire universe to be the Self alone, from living as he pleases!

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