अष्टावक्र गीता
अध्याय ५
श्लोक ४
समदुःखसुखः पूर्ण आशानैराश्ययोः समः।।
समजीवितमृत्युः सन्नेवमेव लयं व्रज।।४।।
(समदुःखसुखः पूर्णः आशानैराश्ययोः समः। समजीवितमृत्युः सन् एवं एव लयं व्रज।।)
अर्थ : सुख और दुःख को समान समझते हुए, आशा-निराशा में समान रूप से अनुद्विग्न और अविचलित रहते हुए, जीवित या मृत्यु होने की स्थिति को भी समान भाव से स्वीकार करते हुए, इस प्रकार परमात्मा में निमग्न हो रहो।
।।इति पञ्चमाध्यायः।।
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ಅಷಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೫
ಶ್ಲೋಕ ೪
ಸಮದುಃಖಸುಖಃ ಪೂರ್ಣ
ಆಶಾನೈರಾಶ್ಯಯೋಃ ಸಮಃ||
ಸಮಜೀವಿತಮೃತ್ಯುಃ ಸನ್-
ನೇವಮೇ ಲಯಂ ಷ್ರಜ||೪||
||ಇತಿ ಪಞಚಮೋऽಧ್ಯಾಯಃ||
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Ashtavakra Gita
Chapter 5
Stanza 4
You are perfect and equinamious in misery and happiness, hope and despair, and life and death. Therefore even thus do you attain (the state of) Dissolution.
Thus concludes the Chapter 5 of this text :
The Ashtavakra Gita.
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