Friday, 20 January 2023

महोदधिरिवाहं

अष्टावक्र गीता

अध्याय ६

श्लोक २

महोदधिरिवाहं सप्रपञ्चो वीचिसन्निभः।।

इति ज्ञानं तथैतस्य न त्यागो न ग्रहो लयः।।२।।

(महा उदधिः इव अहं सप्रपञ्चः वीचिसन्निभः।।

इति ज्ञानं तथा एतस्य न त्यागः न ग्रहः लयः।।)

अर्थ  : प्रपञ्चसहित मैं (आत्मा) महासागर की तरह, और प्रपञ्च मुझ महासागर में उठती तरंगें हैं। मुझे इतना ही पता है, यह ज्ञान: -जिसका न तो त्याग किया जा सकता है, न जिसका परिग्रह ही संभव है, और न जो कभी विलुप्त ही होता है।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೬

ಶ್ಲೋಕ ೨

ಮಹೋದಧಿರಿವಾಹಂ ಹಪೃಪಞಚೋ ಪೀಚಿಸನ್ನಿಭಃ||

ಇತಿ ಜ್ಞಾನಂ ತಥೈತಸ್ಯ ನ ತ್ಯಾಗೋ ನ ಗ್ರಹೋ ಲಯಃ||೨||

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Ashtavakra Gita

Chapter Stanza 2 : This 

(The knowledge) That I am like the ocean, and the phenomenal universe is like the wave. This is Knowledge. So it has neither to be renounced nor accepted nor destroyed.

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