अष्टावक्र गीता
अध्याय ६
श्लोक २
महोदधिरिवाहं सप्रपञ्चो वीचिसन्निभः।।
इति ज्ञानं तथैतस्य न त्यागो न ग्रहो लयः।।२।।
(महा उदधिः इव अहं सप्रपञ्चः वीचिसन्निभः।।
इति ज्ञानं तथा एतस्य न त्यागः न ग्रहः लयः।।)
अर्थ : प्रपञ्चसहित मैं (आत्मा) महासागर की तरह, और प्रपञ्च मुझ महासागर में उठती तरंगें हैं। मुझे इतना ही पता है, यह ज्ञान: -जिसका न तो त्याग किया जा सकता है, न जिसका परिग्रह ही संभव है, और न जो कभी विलुप्त ही होता है।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೬
ಶ್ಲೋಕ ೨
ಮಹೋದಧಿರಿವಾಹಂ ಹಪೃಪಞಚೋ ಪೀಚಿಸನ್ನಿಭಃ||
ಇತಿ ಜ್ಞಾನಂ ತಥೈತಸ್ಯ ನ ತ್ಯಾಗೋ ನ ಗ್ರಹೋ ಲಯಃ||೨||
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Ashtavakra Gita
Chapter Stanza 2 : This
(The knowledge) That I am like the ocean, and the phenomenal universe is like the wave. This is Knowledge. So it has neither to be renounced nor accepted nor destroyed.
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