Wednesday, 18 January 2023

आकाशवदनन्तोऽहं

अष्टावक्र गीता षष्ठाध्यायः

अध्याय ६

श्लोक १

अष्टावक्र उवाच :

आकाशवदनन्तोऽहं घटवत्प्राकृतं जगत्।।

इति ज्ञानं तथैतस्य न त्यागो न ग्रहो लयः।।१।।

(आकाशवत् अनन्तः अहं घटवत् प्राकृतं जगत्। इति ज्ञानं तथा एतस्य न त्यागः न ग्रहः लयं।।)

अर्थ : मैं / आत्मा आकाश की भाँति अनन्त, जबकि (समस्त दृश्य) जगत् घट की भाँति प्रकृति का कार्य है। जगत् का न तो त्याग किया जा सकता है, न ही उसका अधिग्रहण किया जाना संभव है, और न ही उसका नाश होता है। (किन्तु उसका लय -दृश्य-विलय अवश्य ही होता है), इस प्रकार से जान लेना,  ज्ञान है।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ 

ಷಷ್ಠಾಧ್ಯಾಯಃ

ಶ್ಲೋಕ ೧

ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಉವಾಚ :

ಆಕಾಶವದನನ್ತೋऽಹಂ

ಘಟವತ್ ಪ್ರಾಕೃತಂ ಜಗತ್||

ಇತಿ ಜ್ಞಾನಂ ತಥೈತಸ್ಯ

ನ ತ್ಯಾಗೋ ಲ ಗ್ರಹೋ ಲಯಂ||೧||

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Ashtavakra Gita 

Chapter 6

Stanza 1

Boundless as Space am I. The phenomenal world is like a jar. This is Knowledge. So it has neither to be renounced nor accepted nor destroyed. 

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