अष्टावक्र गीता षष्ठाध्यायः
अध्याय ६
श्लोक १
अष्टावक्र उवाच :
आकाशवदनन्तोऽहं घटवत्प्राकृतं जगत्।।
इति ज्ञानं तथैतस्य न त्यागो न ग्रहो लयः।।१।।
(आकाशवत् अनन्तः अहं घटवत् प्राकृतं जगत्। इति ज्ञानं तथा एतस्य न त्यागः न ग्रहः लयं।।)
अर्थ : मैं / आत्मा आकाश की भाँति अनन्त, जबकि (समस्त दृश्य) जगत् घट की भाँति प्रकृति का कार्य है। जगत् का न तो त्याग किया जा सकता है, न ही उसका अधिग्रहण किया जाना संभव है, और न ही उसका नाश होता है। (किन्तु उसका लय -दृश्य-विलय अवश्य ही होता है), इस प्रकार से जान लेना, ज्ञान है।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಷಷ್ಠಾಧ್ಯಾಯಃ
ಶ್ಲೋಕ ೧
ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಉವಾಚ :
ಆಕಾಶವದನನ್ತೋऽಹಂ
ಘಟವತ್ ಪ್ರಾಕೃತಂ ಜಗತ್||
ಇತಿ ಜ್ಞಾನಂ ತಥೈತಸ್ಯ
ನ ತ್ಯಾಗೋ ಲ ಗ್ರಹೋ ಲಯಂ||೧||
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Ashtavakra Gita
Chapter 6
Stanza 1
Boundless as Space am I. The phenomenal world is like a jar. This is Knowledge. So it has neither to be renounced nor accepted nor destroyed.
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