Sunday, 8 January 2023

तज्ज्ञस्य पुण्यपापाभ्याम्

अष्टावक्र गीता

अध्याय ४

श्लोक ३

तज्ज्ञस्य पुण्यपापाभ्यां स्पर्शोह्यन्तर्न जायते।।

नह्याकशस्य धूमेन दृश्यमानापि संगतिः।।३।।

(तत् ज्ञस्य पुण्यपापाभ्यां स्पर्शः हि अन्तर् न जायते। न हि आकाशस्य धूमेन दृश्यमान अपि संगतिः।।)

अर्थ : जैसे आकाश में फैले धुएँ को देखकर आकाश धुँधला है, ऐसा आभास होता है, किन्तु धुआँ आकाश को स्पर्श तक नहीं करता, उसी तरह उस तत्-पद ब्रह्म को जो जानता है, पुण्य और पाप उसे स्पर्श तक नहीं करते।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೪

ಶ್ಲೋಕ ೩

ತತ್-ಜ್ಞಸ್ಯ ಪುಣ್ಯಪಾಪಾಭ್ಯಾಂ

ಸ್ಪರ್ಶೋ ಹ್ಯನ್ತರ್ನ ಚಾಯತೇ||

ನಹ್ಯಾಕಾಶಸ್ಯ ಧೂಮೇನ -

ದೃಶ್ಯಮಾನಾಪಿ ಸಂಗತಿಃ ||೩||

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Ashtavakra Gita

Chapter 4

Stanza 3

The heart of one, who has known That (तत्)  is not touched by virtue and vice, as the sky is not touched by smoke, even though it appeares to be. 

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