अष्टावक्र गीता
अध्याय ४
श्लोक ३
तज्ज्ञस्य पुण्यपापाभ्यां स्पर्शोह्यन्तर्न जायते।।
नह्याकशस्य धूमेन दृश्यमानापि संगतिः।।३।।
(तत् ज्ञस्य पुण्यपापाभ्यां स्पर्शः हि अन्तर् न जायते। न हि आकाशस्य धूमेन दृश्यमान अपि संगतिः।।)
अर्थ : जैसे आकाश में फैले धुएँ को देखकर आकाश धुँधला है, ऐसा आभास होता है, किन्तु धुआँ आकाश को स्पर्श तक नहीं करता, उसी तरह उस तत्-पद ब्रह्म को जो जानता है, पुण्य और पाप उसे स्पर्श तक नहीं करते।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೪
ಶ್ಲೋಕ ೩
ತತ್-ಜ್ಞಸ್ಯ ಪುಣ್ಯಪಾಪಾಭ್ಯಾಂ
ಸ್ಪರ್ಶೋ ಹ್ಯನ್ತರ್ನ ಚಾಯತೇ||
ನಹ್ಯಾಕಾಶಸ್ಯ ಧೂಮೇನ -
ದೃಶ್ಯಮಾನಾಪಿ ಸಂಗತಿಃ ||೩||
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Ashtavakra Gita
Chapter 4
Stanza 3
The heart of one, who has known That (तत्) is not touched by virtue and vice, as the sky is not touched by smoke, even though it appeares to be.
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