Wednesday, 1 February 2023

सक्तं कास्वपि दृष्टिषु

अष्टावक्र गीता

अध्याय ८

श्लोक ३

तदा बन्धो यदा चित्तं सक्तं कास्वपि दृष्टिषु।।

तदा मोक्षो यदा चित्तमसक्तं सर्वदृष्टिषु।।३।।

(तदा बन्धः यदा चित्तं सक्तं कासु अपि दृष्टिषु। तदा मोक्षः यदा चित्तं असक्तं सर्वदृष्टिषु।।) 

अर्थ : जब चित्त किन्हीं भी दृष्टियों में आनेवाले किसी भी विषय से संसक्त / संलिप्त होता है तो बन्धन होता है। जब मन सभी दृष्टियों में आनेवाले किसी भी विषय से लिप्त नहीं होता, तब मोक्ष होता है।

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ತದಾ ಬನ್ಧೋ ಯದಾ ಚಿತ್ತಂ

ಹಕ್ತಂ ಕಾಸ್ವಪಿ ದೃಷ್ಟಿಷು||

ತದಾ ಮೋಕ್ಷೋ ಯದಾಚಿತ್ತ-

ಮಸಕ್ತಂ ಹರ್ವದೃಷ್ಟಿಹೀ||೩||

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Ashtavakra Gita

Chapter 8

Stanza 3

It is bondage when the mind is attached to any particular senses. It is liberation when the mind is not attached to any of the senses.

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