अष्टावक्र गीता
अध्याय ८
श्लोक ३
तदा बन्धो यदा चित्तं सक्तं कास्वपि दृष्टिषु।।
तदा मोक्षो यदा चित्तमसक्तं सर्वदृष्टिषु।।३।।
(तदा बन्धः यदा चित्तं सक्तं कासु अपि दृष्टिषु। तदा मोक्षः यदा चित्तं असक्तं सर्वदृष्टिषु।।)
अर्थ : जब चित्त किन्हीं भी दृष्टियों में आनेवाले किसी भी विषय से संसक्त / संलिप्त होता है तो बन्धन होता है। जब मन सभी दृष्टियों में आनेवाले किसी भी विषय से लिप्त नहीं होता, तब मोक्ष होता है।
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ತದಾ ಬನ್ಧೋ ಯದಾ ಚಿತ್ತಂ
ಹಕ್ತಂ ಕಾಸ್ವಪಿ ದೃಷ್ಟಿಷು||
ತದಾ ಮೋಕ್ಷೋ ಯದಾಚಿತ್ತ-
ಮಸಕ್ತಂ ಹರ್ವದೃಷ್ಟಿಹೀ||೩||
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Ashtavakra Gita
Chapter 8
Stanza 3
It is bondage when the mind is attached to any particular senses. It is liberation when the mind is not attached to any of the senses.
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