Tuesday, 14 February 2023

कस्यापि तात धन्यस्य

अष्टावक्र गीता

अध्याय ९

श्लोक २

कस्यापि तात धन्यस्य लोकचेष्टावलोकनात्।।

जीवितेच्छा बुभुक्षा च बुभुत्सोपशमं गताः।।२।।

(कस्य अपि तात धन्यस्य लोकचेष्टा-अवलोकनात्।

जीवित-इच्छा बुभुक्षा च बुभुत्सा उपशमं गताः।।)

अर्थ : हे तात! कोई कोई ही ऐसा भाग्यवान होता है, जिसकी जीते रहने की, उपभोग करते रहने की, और (लौकिक) ज्ञान प्राप्त करते रहने की इच्छाएँ, विविध सांसारिक क्रिया-कलापों का अवलोकन करने से शान्त हो जाती हों। बिरला ही मनुष्य ऐसा होता है जो कि इस प्रकार से संसार से उपरत होता हो।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೯

ಶ್ಲೋಕ ೨

ಕಸ್ಯಾಪಿ ತಾತ ಧನ್ಯಸ್ಯ 

ಲೋಕಚೇಷ್ಟಾವಲೋಕನಾತ್||

ಜೀವಿತೇಚ್ಛಾ ಬುಭುಕ್ಷಾ ಚ

ಬುಭುತ್ಸೋಪಶಮಂ ಗತಾಃ||೨||

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Ashtavakra Gita

Chapter 9

Stanza 2

My Child! Who is that blessed person whose desires to live, to enjoy and to know have been extinguished by observing the ways of men?

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