अष्टावक्र गीता
अध्याय ९
श्लोक २
कस्यापि तात धन्यस्य लोकचेष्टावलोकनात्।।
जीवितेच्छा बुभुक्षा च बुभुत्सोपशमं गताः।।२।।
(कस्य अपि तात धन्यस्य लोकचेष्टा-अवलोकनात्।
जीवित-इच्छा बुभुक्षा च बुभुत्सा उपशमं गताः।।)
अर्थ : हे तात! कोई कोई ही ऐसा भाग्यवान होता है, जिसकी जीते रहने की, उपभोग करते रहने की, और (लौकिक) ज्ञान प्राप्त करते रहने की इच्छाएँ, विविध सांसारिक क्रिया-कलापों का अवलोकन करने से शान्त हो जाती हों। बिरला ही मनुष्य ऐसा होता है जो कि इस प्रकार से संसार से उपरत होता हो।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೯
ಶ್ಲೋಕ ೨
ಕಸ್ಯಾಪಿ ತಾತ ಧನ್ಯಸ್ಯ
ಲೋಕಚೇಷ್ಟಾವಲೋಕನಾತ್||
ಜೀವಿತೇಚ್ಛಾ ಬುಭುಕ್ಷಾ ಚ
ಬುಭುತ್ಸೋಪಶಮಂ ಗತಾಃ||೨||
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Ashtavakra Gita
Chapter 9
Stanza 2
My Child! Who is that blessed person whose desires to live, to enjoy and to know have been extinguished by observing the ways of men?
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