अष्टावक्र गीता
अध्त्राय ८
श्लोक ४
यदा नाहं तदा मोक्षो यदाहं बन्धनं तदा।।
मत्वेति हेलया किञ्चित् मा गृहाण विमुञ्च मा।।४।।
।।इति अष्टमाध्यायः।।
(यदा न अहं तदा मोक्षः यदा अहं बन्धनं तदा। मत्वा इति हेलया किञ्चित् मा गृहाण विमुञ्च मा।।)
अर्थ : जब अहं-भावना नहीं होती, तब मोक्ष होता है और अहं-भावना के आते ही बन्धन होता है। इसे सरलतापूर्वक अनायास खेल की तरह जानते हुए न तो किसी विषय के प्रति राग, और न ही किसी विषय से द्वेष करो।
अष्टावक्र गीता का आठवाँ अध्याय पूर्ण हुआ।
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ಯದಾ ನಾಸಂ ತದಾ ಮೋಕ್ಷೋ
ಯದಾಹಂ ಬನ್ಧನಂ ತದಾ||
ಮತ್ವೇತಿ ಹೇಲಯಾ ಕಿಞ್ಚಿದಿತ್
ಮಾ ಗೃಹಾಟಃ ವಿಮೀಞ್ಚ ಮಾ||೪||
||ಇತಿ ಪಞಮಾಧ್ಯಾಯಃ||
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Ashtavakra Gita
Chapter 8
Stanza 4
When there is no 'I' (ego) there is liberation; when there is 'I', there is bondage. (With no extra effort as if it's a play), Considering this, easily refrain from clinging to or rejecting anything.
Thus concludes the chapter 8 of this text :
Ashtavakra Gita.
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