Friday, 17 February 2023

अनित्यं सर्वमेवेदम्

अष्टावक्र गीता

अध्याय ९

श्लोक ३

अनित्यमेवेदं सर्वं तापत्रितयदूषितम्।।

असारं निन्दितं हेयमिति निश्चित्य शाम्यति।।३।।

(अनित्यं एव इदं सर्वं ताप-त्रितय-दूषितम्। असारं निन्दितं हेयं इति निश्चित्य शाम्यति।।)

अर्थ : यह सब कुछ (प्रपञ्च) भौतिक, दैहिक तथा दैविक इन तीन प्रकार के तापों से दूषित है, सारशून्य, निन्दित और हेय है, इसे निश्चयपूर्वक जान लेने पर ही इसका शमन होता है।

--

ಅಷಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೯

ಶ್ಲೋಕ ೩

ಅನಿತ್ಯಂ ಹರ್ವಮೇವೇದಂ ತಾಪತ್ರಿತಯದೂಷಿತಮ್||

ಅಹಾರಂ ನಿನ್ದಿತಂ ಹೇಯಮಿತಿ ನಿಶ್ಚಿತ್ಯ ಶಾಮ್ಯತಿ||೩||

--

Ashtavakra Gita

Chapter 9

Stanza 3

A wise man becomes quiet by realising that all this is vitiated by the three-fold misery and is transient, unsubstantial, contemptible and worthy to be rejected.

***

No comments:

Post a Comment