अष्टावक्र गीता
अध्याय ९
श्लोक ३
अनित्यमेवेदं सर्वं तापत्रितयदूषितम्।।
असारं निन्दितं हेयमिति निश्चित्य शाम्यति।।३।।
(अनित्यं एव इदं सर्वं ताप-त्रितय-दूषितम्। असारं निन्दितं हेयं इति निश्चित्य शाम्यति।।)
अर्थ : यह सब कुछ (प्रपञ्च) भौतिक, दैहिक तथा दैविक इन तीन प्रकार के तापों से दूषित है, सारशून्य, निन्दित और हेय है, इसे निश्चयपूर्वक जान लेने पर ही इसका शमन होता है।
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ಅಷಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೯
ಶ್ಲೋಕ ೩
ಅನಿತ್ಯಂ ಹರ್ವಮೇವೇದಂ ತಾಪತ್ರಿತಯದೂಷಿತಮ್||
ಅಹಾರಂ ನಿನ್ದಿತಂ ಹೇಯಮಿತಿ ನಿಶ್ಚಿತ್ಯ ಶಾಮ್ಯತಿ||೩||
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Ashtavakra Gita
Chapter 9
Stanza 3
A wise man becomes quiet by realising that all this is vitiated by the three-fold misery and is transient, unsubstantial, contemptible and worthy to be rejected.
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