Sunday, 19 February 2023

कोऽसौ कालो वयः

अष्टावक्र गीता

अध्याय ९

श्लोक ४

कोऽसौ कालो वयः किं वा यत्र द्वन्द्वानि नो नृणाम्।।

तान्युपेक्ष्य यथा प्राप्तवर्ती सिद्धिमवाप्नुयात्।।४।।

(कः असौ कालः वयः किं वा यत्र द्वन्द्वानि न उ नृणाम्। तानि उपेक्ष्य यथा प्राप्तवर्ती सिद्धिं अवाप्नुयात्।।) 

अर्थ : ऐसा कौन सा समय होता है या आयु होती है जब मनुष्यों को कोई न कोई द्वन्द्व नहीं होता! अर्थात् ऐसा कभी नहीं होता कि मनुष्य द्वन्द्वों से रहित हो सके। इस स्थिति में यही उचित है कि उन सभी द्वन्द्वों की उपेक्षा करते हुए जो भी प्राप्त या अप्राप्त होता है, वह उससे संतुष्ट और अप्रभावित रहे।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೯

ಶ್ಲೋಕ ೪

ಕೋऽಸೈ ಕಾಲೋ ವಯಃ ಕಿಂ ವಾ

ಯತ್ರ ದ್ಪನ್ದ್ವಾನಿ  ನಿನಿ ನೋ ನೃಣಾಂ||

ತಾನ್ಯುಪೇಕ್ಷ್ಯ ಯಥಾಪ್ರಾಪ್ತ-

ವರ್ತೀ ಸಿದ್ಧಿಮವಾಪ್ನುಯಾತ್||೪||

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Ashtavakra Gita

Chapter 9

Stanza 4

What is that time or age (in the life) in which the pairs of opposites don't exist for men! (-- There is never such a time in life). One who is content with whatever comes of itself, and quits these (pairs of these opposites) attains peace / perfection ultimate.

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