अष्टावक्र गीता
अध्याय १०
श्लोक १
विहाय वैरिणं काममर्थं चानर्थसंकुलम्।।
धर्ममप्येतयोर्हेतुं सर्वत्रानादरं कुरु।।१।।
(विहाय वैरिणं कामं अर्थं च अनर्थ-संकुलम्। धर्मं अपि एतयोः हेतुं सर्वत्र-अनादरं कुरु।।)
अर्थ : (अध्याय ९ के अंतिम श्लोक ९ में कहा गया, कि वासना ही संसार है और संसार का परित्याग वासना के परित्याग से ही होता है, इस दसवें अध्याय के प्रथम श्लोक में उस वासना को ही काम कहा गया है।)
काम अर्थात् कामना जो कि सम्पूर्ण अर्थ-अनर्थ के समूह का मूल है, का परित्याग कर, उस धर्म का भी परित्याग कर दो जो कि काम का भी हेतु है, इस प्रकार काम का सर्वत्र ही अनादर करो।
टिप्पणी : श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय २ के इस श्लोक से तुल्य है :
विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।।
निर्ममो निरहङ्कारः स शान्तिमधिगच्छति।।७१।।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೦
ಶ್ಲೋಕ ೧
ವಿಹಾಯ ವೈರಿಣಂ ಕಾಮ-
ಮರ್ಥಂ ಚಾನರ್ಥಸಂಕುಲಮಲಮ್||
ಧರ್ಮಮಪ್ಯೇತಯೋರ್ಹೇತುಂ
ಹರ್ವತ್ನಾರಾದರಂ ಕುರು||೧||
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Ashtavakra Gita
Chapter 10
Stanza 1
Be indifferent to everything having given up Kama (Desire) -the enemy, Artha (worldly prosperity) which is attended with mischief as well as Dharma (sense of duty) which is the cause of these two (Kama and Artha).
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