Tuesday, 28 February 2023

स्वप्नेन्द्रजालवत्पश्य

अष्टावक्र गीता

अध्याय १०

श्लोक २

स्वप्नेन्द्रजालवत्पश्य दिनानि त्रीणि पञ्च वा।।

मित्र क्षेत्र धनागारदारदायादिसम्पदः।।२।।

(स्वप्न-इन्द्रजाल-वत् पश्य दिनानि त्रीणि पञ्च वा। मित्र क्षेत्र धन-आगार दार दायादि सम्पदा।।)

अर्थ : तीन चार पाँच दिन, दो-चार दिन रहनेवाले इस सांसारिक जीवन अर्थात्  मित्र, भूमि, धन-कोष, स्त्री और दूसरे मूल्यवान उपहार आदि सम्पत्तियों को स्वप्न या किसी मायावी जादूगर के द्वारा दिखलाए जाने वाले खेल की तरह देखो।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೦

ಶ್ಲೋಕ ೨

ಸ್ವಪ್ನೇಂದ್ರಜಾಲವತ್ಪಶ್ಯ

ದಿನಾನೂ ತ್ರೀಣಿ ಪಚ್ಚೆ ವಾ||

ಮಿತ್ರಲ ತ್ಷಷೇತ್ರ ಧನಾಗಾರ

ದಾರದಾಯಾದಿ ಸಮ್ಪದಃ||೨||

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Ashtavakra Gita

Chapter 10

Stanza 2

Look upon friends, lands, wealth, houses, wives, parents and such other good fortunes as a dream or a juggler's show, lasting for a few; (three or five) days.

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