अष्टावक्र गीता
अध्याय १०
श्लोक ३
यत्र यत्र भवेत् तृष्णा संसारं विद्धि तत्र वै।।
प्रौढवैराग्यमाश्रित्य वीततृष्णः सुखी भव।।३।।
(यत्र यत्र भवेत् तृष्णा संसारं विद्धि तत्र वै। प्रौढवैराग्यं आश्रित्य वीततृष्णः सुखी भव।।)
अर्थ : यह जान लो कि जहाँ जहाँ भी तृष्णा है, वहाँ अवश्य ही संसार ही है। अतः दृढ और परिपक्व वैराग्य का आश्रय लेकर तृष्णा से ऊपर उठो और सुखी हो रहो।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೦
ಶ್ಲೋಕ ೩
ಯತ್ರ ಯತ್ರ ಭವೇತ್ ತೃಷ್ಣಾ ಸಂಸಾರಂ ವಿದ್ಧಿ ತತ್ರ ವೈ||
ಪ್ರೌಢವೃರಾಗ್ಯಮಾಶ್ರಿತ್ಯ ವೀತತೃಷ್ಣಃ ಸುಖೀ ಭವ ||೩||
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Ashtavakra Gita
Chapter 10
Stanza 3
Know the world (samsara) to be indeed wherever there is desire. Betake yourself to firm Non-attachment, being freed from desire be happy.
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