Wednesday, 1 March 2023

यत्र यत्र भवेत् तृष्णा

अष्टावक्र गीता

अध्याय १०

श्लोक ३

यत्र यत्र भवेत् तृष्णा संसारं विद्धि तत्र वै।। 

प्रौढवैराग्यमाश्रित्य वीततृष्णः सुखी भव।।३।।

(यत्र यत्र भवेत् तृष्णा संसारं विद्धि तत्र वै। प्रौढवैराग्यं आश्रित्य वीततृष्णः सुखी भव।।)

अर्थ : यह जान लो कि जहाँ जहाँ भी तृष्णा है, वहाँ अवश्य ही संसार ही है। अतः दृढ और परिपक्व वैराग्य का आश्रय लेकर तृष्णा से ऊपर उठो और सुखी हो रहो।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೦

ಶ್ಲೋಕ ೩

ಯತ್ರ ಯತ್ರ ಭವೇತ್ ತೃಷ್ಣಾ ಸಂಸಾರಂ ವಿದ್ಧಿ ತತ್ರ ವೈ||

ಪ್ರೌಢವೃರಾಗ್ಯಮಾಶ್ರಿತ್ಯ ವೀತತೃಷ್ಣಃ ಸುಖೀ ಭವ ||೩||

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Ashtavakra Gita

Chapter 10

Stanza 3

Know the world (samsara) to be indeed wherever there is desire. Betake yourself to firm Non-attachment, being freed from desire be happy.

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