अष्टावक्र गीता
अध्याय ११
श्लोक ५
चिन्तया जायते दुःखं नान्यथेहेति निश्चयी।।
तयाहीनः सुखी शान्तः सर्वत्र गळितस्पृहः।।५।।
(चिन्तया जायते दुःखं न अन्यथा इह इति निश्चयी। तथा हीनः सुखी शान्तः सर्वत्र गळितस्पृहः।।)
अर्थ : जिसे यह निश्चय हो जाता है कि चिन्ता से ही दुःख उत्पन्न होता है, वह सर्वत्र स्पृहा से रहित, सुखी और शान्त हो जाता है।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೧
ಶ್ಲೋಕ ೫
ಚಿನ್ತಯಾ ಜಾಯತೇ ದುಃಖಂ ನಾನ್ಯಥೇಹೇತಿ ನಿಶ್ಚಯೀ||
ತಯಾ ಹೀನಃ ಸೀಖೀ ಶಾನ್ತಃ ಸರ್ವತ್ರ ಗಳಿತಸ್ಪೃಹಃ||೫||
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Ashtavakra Gita
Chapter 11
Stanza 5
One who has realized that care in this world, breeds misery and nothing else, becomes free from it, and is happy, peaceful and rid of desires everywhere.
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