Monday, 13 March 2023

चिन्तया जायते दुःखं

अष्टावक्र गीता

अध्याय ११

श्लोक ५

चिन्तया जायते दुःखं नान्यथेहेति निश्चयी।।

तयाहीनः सुखी शान्तः सर्वत्र गळितस्पृहः।।५।।

(चिन्तया जायते दुःखं न अन्यथा इह इति निश्चयी। तथा हीनः सुखी शान्तः सर्वत्र गळितस्पृहः।।)

अर्थ : जिसे यह निश्चय हो जाता है कि चिन्ता से ही दुःख उत्पन्न होता है, वह सर्वत्र स्पृहा से रहित, सुखी और शान्त हो जाता है।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೧

ಶ್ಲೋಕ ೫

ಚಿನ್ತಯಾ ಜಾಯತೇ ದುಃಖಂ ನಾನ್ಯಥೇಹೇತಿ ನಿಶ್ಚಯೀ||

ತಯಾ ಹೀನಃ ಸೀಖೀ ಶಾನ್ತಃ ಸರ್ವತ್ರ ಗಳಿತಸ್ಪೃಹಃ||೫||

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Ashtavakra Gita

Chapter 11

Stanza 5

One who has realized that care in this world, breeds misery and nothing else, becomes free from it, and is happy, peaceful and rid of desires everywhere.

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