अष्टावक्र गीता
अध्याय १२
श्लोक ६
कर्मानुष्ठानमज्ञानाद्यथैवोपरमस्तथा।।
बुद्ध्वा सम्यगिदं तत्त्वमेवमेवाहमास्थितः।।६।।
(कर्म-अनुष्ठानं अज्ञानात् यथा एव उपरमः तथा।। बुद्ध्वा सम्यक् इदं तत्त्वं एवं एव अहं आस्थितः।।)
अर्थ : अज्ञानपूर्वक कर्म को किया जाने का, या कर्म को न करने का आग्रह होना, इसके मूल तत्त्व को इस तरह से भली प्रकार से जानकर (-- कि कर्ममात्र प्रकृति के द्वारा गुणों के माध्यम से होनेवाली घटनाएँ हैं, और मैं उनसे नितान्त अस्पर्शित हूँ), -- मैं अपने उस निज स्वरूप में अचल रूप से सदा अधिष्ठित रहता हूँ।
--
ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೨
ಶ್ಲೋಕ ೬
ಕರ್ಮಾನುಷ್ಠಾನಮಜ್ಞಾನಾದ್ಯಥೈವೋಪರಮಸತಥಾ||
ಬುದ್ಧ್ವಾಮಿದಂ ತತ್ವಮೇವಮೆವಾಹಮಾಸ್ಥಿತಃ||೬||
--
Ashtavakra Gita
Chapter 12
Stanza 6
The cessation from action is as much an outcome of ignorance as the performance thereof. Knowing this truth fully well, thus verily do I abide.
***
No comments:
Post a Comment