Monday, 27 March 2023

कर्मानुष्ठानमज्ञानात्

अष्टावक्र गीता

अध्याय १२

श्लोक ६

कर्मानुष्ठानमज्ञानाद्यथैवोपरमस्तथा।।

बुद्ध्वा सम्यगिदं तत्त्वमेवमेवाहमास्थितः।।६।।

(कर्म-अनुष्ठानं अज्ञानात् यथा एव उपरमः तथा।। बुद्ध्वा सम्यक् इदं तत्त्वं एवं एव अहं आस्थितः।।)

अर्थ : अज्ञानपूर्वक कर्म को किया जाने का, या कर्म को न करने का आग्रह होना, इसके मूल तत्त्व को इस तरह से भली प्रकार  से जानकर (-- कि कर्ममात्र प्रकृति के द्वारा गुणों के माध्यम से होनेवाली घटनाएँ हैं, और मैं उनसे नितान्त अस्पर्शित हूँ), -- मैं अपने उस निज स्वरूप में अचल रूप से सदा अधिष्ठित रहता हूँ।

--

ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೨

ಶ್ಲೋಕ ೬

ಕರ್ಮಾನುಷ್ಠಾನಮಜ್ಞಾನಾದ್ಯಥೈವೋಪರಮಸತಥಾ||

ಬುದ್ಧ್ವಾಮಿದಂ ತತ್ವಮೇವಮೆವಾಹಮಾಸ್ಥಿತಃ||೬||

--

Ashtavakra Gita

Chapter 12

Stanza 6

The cessation from action is as much an outcome of ignorance as the performance thereof. Knowing this truth fully well, thus verily do I abide.

***


No comments:

Post a Comment