अष्टावक्र गीता
अध्याय १२
श्लोक ५
आश्रमानाश्रमं ध्यानं चित्तस्वीकृतवर्जनम्।।
विकल्पं मम वीक्ष्यैतै रेवमेवाहमास्थितः।।५।।
(आश्रम अनाश्रमं ध्यानं चित्त-स्वीकृत-वर्जनम्। विकल्पं मम वीक्ष्य एतैः एवं एव अहं आस्थितः।।)
अर्थ : आश्रम या अनाश्रम, ध्यान आदि पर चित्त एकाग्र करना या उन्हें त्याग देना, इन विकल्पात्मक विरोधाभासों की व्यर्थता देखकर मैं उनसे रहित हो, इस प्रकार से निज, नित्य, अविकारी स्वरूप में अधिष्ठित हूँ।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೨
ಶ್ಲೋಕ ೫
ಆಶ್ರಮನ್ಶ್ರಮಂ ಧ್ಯಾನಂ
ಚಿತ್ತ ಸ್ವೀಕೃತವರ್ಜನಂ||
ವಿಕಲ್ಪಂ ಮಮ ವೀಕ್ಷ್ಯೈತೈ-
ರೇವಮೇವಾಹಮಾಸ್ಥಿತಃ||೫||
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Ashtavakra Gita
Chapter 12
Stanza 5
A stage of life or no stage of life, meditation, indulgence into, or the renunciation of the objects of the mind --finding them causing distractions to me, thus verily do I abide.
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