अष्टावक्र गीता
अध्याय १०
श्लोक ५
त्वमेकश्चेतनः शुद्धो जडं विश्वमसत्तथा।।
अविद्यापि न किञ्चित्सा का बुभुत्सा तथापि ते।।५।।
(त्वं एकः चेतनः शुद्धः जडं विश्वं असत् तथा। अविद्या अपि न किञ्चित् सा का बुभुत्सा तथापि ते।।)
अर्थ : तुम एकमेव (सत्-अद्वितीय) अतः शुद्ध हो, जबकि विश्व जड और असत् है। (जिसे अविद्या कहा जाता है), अविद्या भी इसी प्रकार असत् है अर्थात् केवल विकल्प / शब्द है। फिर ऐसा क्या रह जाता है, जिसे तुम जानने के लिए तुम उत्सुक हो?
(शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्पः।।९।। समाधिपाद)
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೦
ಶ್ಲೋಕ ೫
ತ್ವಮೆಕಶ್ಚೇತನಃ ಶುದ್ಧೋ ಜಠಂ ವಿಶ್ವಮಸತ್ತಥಾ||
ಅವಿದ್ಯಾಪಿ ನ ಕಿಂಚಿತ್ಸಾ ಕಾ ಬುಭುತ್ಸಾ ತಥಾಪಿ ತೇ||೫||
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Ashtavakra Gita
Chapter 10
Stanza 5
You are One, Intelligent / Intelligence and pure. The universe is non-intelligent and non-existent. Ignorance too has no essence or substance. Yet what desire to know there can be for you!
(Ignorance is but an empty, sense-less word.)
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