अष्टावक्र गीता
अध्याय १२
श्लोक २
प्रीत्यभावेन शब्दादेरदृश्यत्वेन चात्मनः।।
विक्षेपैकाग्रहृदय एवमेवाहमास्थितः।।२।।
(प्रीति अभावेन शब्दादेः अदृश्यत्वेन च आत्मनः। विक्षेप-एकाग्र हृदय एवं एव अहं आस्थितः।।)
अर्थ : शब्द आदि इन्द्रियगम्य संवेदनों के प्रति प्रीति न होने से और चूँकि आत्मा भी दृश्य (इन्द्रिय-मन-बुद्धि आदि के लिए) संवेदनगम्य विषय नहीं है, और इसलिए भी, विक्षेप, एकाग्रता आदि से रहित मैं अपने नित्य अविकारी स्वरूप में अधिष्ठित हूँ।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೨
ಶ್ಲೋಕ ೨
ಪ್ರೀತ್ಯಭಾವೇನ ಶಬ್ದಾದೇರದೃಶ್ಯತ್ವೇನ ಚಾತ್ಮನಃ||
ವಿಕ್ಷೇಪೈಕಾಗ್ರಹೃದಯ ಏವಮೇವಾಹಮಾಸ್ಥಿತಃ||೨||
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Ashtavakra Gita
Chapter 12
Stanza 2
I have no attachment for sound, etc., and the Self also not being an object of perception, I have my mind free from distraction and one-pointed, Even thus do I abide.
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