अष्टावक्र गीता
अध्याय ११
श्लोक ७
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं अहमेवेति निश्चयी।।
निर्विकल्पः शुचि शान्तः प्राप्ताप्राप्तविनिर्वृतः।।७।।
(आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं अहं एव इति निश्चयी। निर्विकल्पः शुचि शान्तः प्राप्त अप्राप्त विनिर्वृतः।।)
अर्थ : तृण से ब्रह्म (या ब्रह्मा) तक सब अहं अर्थात् एकमेव और अद्वितीय आत्मा ही है, इस प्रकार का निश्चय जिसे होता है, वह अन्य कुछ नहीं, शुद्ध और शान्त होता है तथा प्राप्त और अप्राप्त पर उसका ध्यान ही नहीं होता।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೧
ಶ್ಲೋಕ ೬
ಆಬ್ರಹ್ಮಸ್ತಮ್ಬಪರ್ಯನ್ತಂ ಅಹಮೇವೇತಿ ನಿಶ್ಚಯೀ||
ನಿರ್ವಿಕಲ್ಪಃ ಶುಚಿಃ ಶಾನ್ತಃ ಪ್ರಾಪ್ತಾಪ್ರಾಪ್ತವಿನಿರ್ವತಃ ||೬||
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Ashtavakra Gita
Chapter 11
Stanza 7
"It is verily I from Brahma down to the clump of grass,"---one who knows this for certain, becomes free from the condlict of thought, pure and peaceful, and turns away from what is attained or not attained.
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