Thursday, 23 March 2023

हेयोपादेयविरहादेवं

अष्टावक्र गीता

अध्याय १२

श्लोक ४

हेयोपादेयविरहादेवं हर्षविषादयोः।।

अभावादद्यहेब्रह्मन्नेवमेवाहमास्थितः।।४।।

(हेय उपादेय विरहात् एवं हर्ष-विषादयोः। अभावात् यत् हे ब्रह्मन्! एवं एव अहं आस्थितः।।)

अर्थ : जो ग्राह्य है और जो त्याज्य है, उससे रहित और जो हर्ष तथा विषाद से भी रहित, और उनके अभाव में भी जो कुछ भी है, हे ब्रह्म! मैं उस प्रकार से निज, नित्य और अविकारी स्वरूप में अधिष्ठित हूँ।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೨

ಶ್ಲೋಕ ೪

ಹೇಯೋಪಾದೇಯ ವಿರಹಾ-

ದೇವಂ ಹರ್ಷವಿಷಾದಯೋಃ||

ಅಭಾವಾದದ್ಯ ಹೇ ಬ್ರಹ್ಮನ್

ನೇವಮೇವಾಹಮಾಸ್ಥಿತಃ||

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Ashtavakra Gita

Chapter 12

Stanza 4

Being devoid of the sense of the rejectable and the acceptable, and having no joy and sorrow, thus O Brahman, do I abide today!

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