अष्टावक्र गीता
अध्याय ११
श्लोक ३
आपदः संपदः काले दैवादेवेति निश्चयी।।
तृप्तः स्वस्थेन्द्रियो नित्यं न वाञ्छति न शोचति।।३।।
(आपदः संपदः काले दैवात् एव निश्चयी। तृप्तः स्वस्थ-इन्द्रियः नित्यं न वाञ्छति न शोचति।।)
अर्थ : जिसे यह निश्चय हो जाता है कि समृद्धि, सम्पत्ति और विपत्ति समय समय पर दैव से ही प्राप्त हुआ करती है वह नित्य ही स्वस्थचित्त होता है, उसे न तो कोई कामना होती है, न कोई चिन्ता।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೧
ಶ್ಲೋಕ ೩
ಆಪದಃ ಸಂಪದಃ ಕಾಲೇ ದೈವಾದೇವೇತಿ ನಿಶ್ಚಯೀ||
ತೃಪ್ತಃ ಸ್ವಸ್ಥೇನ್ದ್ರಿಯೋ ನಿತ್ಯಂ ನ ವಾಞ್ಛತಿ ನ ಶೋಚತಿ||೩||
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Ashtavakra Gita
Chapter 11
Stanza 3
Knowing for certain that adversity and prosperity come in (their own) time through fate, one is ever contented, has all his senses in control and does not desire or grieve.
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