अष्टावक्र गीता
अध्याय १३
श्लोक १
जनक उवाच --
अकिञ्चनभवंस्वास्थ्यं कौपीनत्वेपि दुर्लभम्।।
त्यागादाने विहायास्मादहमासे यथासुखम्।।१।।
(अकिञ्चन-भवन् स्वास्थ्यं कौपीनत्वेपि दुर्लभम्। त्याग-आदाने विहायास्मात् अहं आसे यथासुखम्।।)
अर्थ : सब कुछ त्यागकर केवल कौपीन धारण कर रहते हुए भी आत्मा में स्थित रहना दुर्लभ है। त्याग और ग्रहण आदि करने या न करने की अपेक्ष, दोनों ही से उठकर जो भी प्राप्त है, मैं उसमें ही प्रसन्नता से सुखपूर्वक रहता हूँ।
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ಅಷ್ಟಾದಶೋಧ್ಯಾಯಃ
ಜನಕ ಉವಾಚ :
ಅಕಿಞ್ಚನಭವಂ ಸ್ವಾಸ್ಥ್ಯಂ
ಕೌಪೀನತ್ವೇಪಿ ದುರ್ಲಭವ್||
ತ್ಯಾಗಾದಾನೇವಿಹಾಯಾಸ್ಮಾ
ದಹಮಾಸೇ ಯಥಾಸುಖಮ್||೧||
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Ashtavakra Gita
Chapter 13
Janaka said :
The poise of mind that springs in one, who is without anything, is rare even when one possesses but a loin-cloth. Therefore giving up renunciation and acceptance, I live happily.
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