Wednesday, 29 March 2023

अकिञ्चनभवंस्वास्थ्यं

अष्टावक्र गीता

अध्याय १३

श्लोक १

जनक उवाच --

अकिञ्चनभवंस्वास्थ्यं कौपीनत्वेपि दुर्लभम्।।

त्यागादाने विहायास्मादहमासे यथासुखम्।।१।।

(अकिञ्चन-भवन् स्वास्थ्यं कौपीनत्वेपि दुर्लभम्। त्याग-आदाने विहायास्मात् अहं आसे यथासुखम्।।)

अर्थ : सब कुछ त्यागकर केवल कौपीन धारण कर रहते हुए भी आत्मा में स्थित रहना दुर्लभ है। त्याग और ग्रहण आदि करने या न करने की अपेक्ष, दोनों ही से उठकर जो भी प्राप्त है, मैं उसमें ही प्रसन्नता से सुखपूर्वक रहता हूँ।

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ಅಷ್ಟಾದಶೋಧ್ಯಾಯಃ 

ಜನಕ ಉವಾಚ :

ಅಕಿಞ್ಚನಭವಂ ಸ್ವಾಸ್ಥ್ಯಂ

ಕೌಪೀನತ್ವೇಪಿ ದುರ್ಲಭವ್||

ತ್ಯಾಗಾದಾನೇವಿಹಾಯಾಸ್ಮಾ

ದಹಮಾಸೇ ಯಥಾಸುಖಮ್||೧||

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Ashtavakra Gita

Chapter 13

Janaka said :

The poise of mind that springs in one, who is without anything, is rare even when one possesses but a loin-cloth. Therefore giving up renunciation and acceptance, I live happily.

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